समदृष्टि

January 1941

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“अरे नामू ! तेरी धोती में खून कैसे लग रहा है?”

“यह तो माँ ! मैंने कुल्हाड़ी से पग को छीलकर देखा था।”

माँ ने धोती उठाकर देखा- पैर में एक जगह की चमड़ी माँस सहित छील दी गई है। नामदेव तो ऐसे लच रहा था मानो उसको कुछ हुआ ही नहीं ।

माँ ने फिर पूछा-’नामू तू बड़ा मूर्ख है। कोई अपने पैर पर भी कुल्हाड़ी चलाया करता है? पैर टूट जाए तो लंगड़ा होना पड़े। घाव पक जाए या सड़ जाए तौ पैर कटवाने की नौबत आवे।’

“तब पेड़ को भी कुल्हाड़ी से चोट लगनी चाहिये उस दिन तेरे कहने से मैं पलास के पेड़ पर कुल्हाड़ी चला कर उसकी छाल उतार लाया था । मेरे मन में आई कि अपने पैर की छाल भी उतार कर देखूँ, मुझे कैसी लगती है। पलाश के पेड़ को कुछ हुआ होगा, यही जानने के लिए मैंने ऐसा किया है माँ।’

नामदेव की माँ को याद आया कि मैंने नामू को उस दिन काढ़े के लिए पलाश की छाल लाने भेजा था। माँ रो पड़ी। उसने कहा-बेटा नामू मालूम होता है तू महान साधु होगा। पेड़ों में और दूसरे जीव-जन्तुओं में भी मनुष्य के ही जैसा जीव है। अपने चोट लगने पर दुख होता है वैसा ही उनको भी होता है।’

बड़ा होने पर यही नामू प्रसिद्ध भक्त नामदेव हुए। -शक्ति


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