वेदों का अमर सन्देश

January 1941

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(श्री॰ पं॰ गोविन्दप्रसाद कौशिक)

तेन व्यक्तेन भुँजीथा। मागृधः कस्यास्विद्ध नम॥

यजु॰ 40।1

सबसे पहले दूसरों की सहायता करो। परोपकार में व्यय करने के पश्चात बचे हुये का खुद उपभोग करो। कभी लालच मत करो। लालच करने का परिणाम बहुत बुरा होता है। धन किसका है? इसका विचार करो। सब धन परमेश्वर का ही है।

कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः॥ यजु॰ 40।2

इस जगत् में सदा प्रतिदिन उत्तमोत्तम कार्य करने चाहिये। अपना अमूल्य समय आलस में व्यर्थ खोना अच्छा नहीं। आलस से हानि और पुरुषार्थ से सदा लाभ होता है। प्रत्येक मनुष्य को सौ वर्ष तक जीने का प्रयत्न करना चाहिये।

सम्यञ्चः सव्रता भूत। वाचंवदत भद्रया॥

अथर्व॰ 3।30।31

सदा आपस में मिलजुल कर रहो। झगड़ा कभी न करो। सब मिलकर अपना अपना कर्तव्य कार्य उत्तम रीति से करते रहो। सदा उत्तम भाषण किया करो। बुरे शब्दों का उच्चारण कभी मत करो।

मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन। मा स्वामारमृत स्वसा॥

अथर्व 3।30।3

भाई अपने भाई के साथ कभी लड़ाई न करे तथा बहिन अपनी बहिन के साथ झगड़ा न करे भाई बहन में कभी झगड़ा न हो। सब आपस में मिल जुल कर प्रेम के साथ बर्ताव करें।

संगच्छध्वं संवदध्वम्। संवो मानाँसि जानताम्।

ऋ॰ 10।191।2

सब लोग मिलकर रहो मिलकर उत्तम भाषण करो और अपने मनों को ज्ञानवान् करो। कोई भी परस्पर द्वेष न करे। परस्पर बुरा भाषण न करे और कोई अज्ञानी न रहे।

यत्रून मश्याँ गति मित्रस्य ययाँ पथा॥ ऋ॰ 5।64

यदि सब मनुष्य परस्पर प्रेम पूर्वक बर्ताव करते तो निश्चय ही उन्नति को प्राप्त होंगे।

कस्ये मृताना अति यान्तिरिप्रं आयुर्दधानाः प्रतरं नवीया॥

अथर्व. 1123।17

जो मनुष्य अपनी आयु, पुरुषार्थ बढ़ाते हैं और अपने आपको ईश्वर की भक्ति से पवित्र मानते हैं उनके सब दोष दूर होते हैं।


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