मनुष्य सहस्र बार नीचे गिरता है, उसे सहस्र वार ऊंचे उठने को प्रयत्न करना चाहिए प्रति बार उस सीमा से कुछ अधिक ऊंचा जहाँ से वह गिरा था। पूर्णता प्राप्त करने का यह अव्यर्थ साधन है।
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महापुरुषों को दो वस्तुएं सबसे प्यारी होती हैं, श्रम और दुख। क्योंकि दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व को नहीं समझा जा सकता ।
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मारने में वीरता नहीं, पशुता है। परन्तु जिसमें स्वयं मरने की शक्ति है वह वीर है। त्याग का आदर्श महान है, वही संसार में कुछ कर सकता है जिसमें त्याग की मात्रा अधिक हो।
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जो पराई स्त्री को पाप की आँखों से देखता है वह परमात्मा के क्रोध को जगाता है और अपने लिए नरक का रास्ता तैयार करता है।