आराम मुर्दों के लिए है और काम जीवितों के लिए।
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मनुष्य विचारशील होने से मनुष्य होता है और निःस्वार्थ कर्म करने से वही देवता भी हो सकता है।
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जीवन एक प्रश्न है और मरण उसका उत्तर।
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जो अपने कर्तव्य के पालन में तत्पर नहीं रहते वे मनुष्य रूप में पशु हैं।
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जिस प्रकार हवा की संगति से धूल आकाश तक पहुँच जाती है और जल के संयोग से नीचे आकर कीचड़ में मिल जाती है उसी प्रकार सुसंगति से मनुष्य का उत्थान और कुसंगति से पतन होता है।