शक्ति का संचय भी अनिवार्य

June 1989

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आपके जीवन में कोई दुःख है तो समझिये कि आपके साथ कोई निर्बलता अवश्य बँधी हुई है। शरीर की कमजोरी से रोग घेरते, मानसिक कमजोरी से चिन्तायें सताती हैं। अपनी बौद्धिक क्षमतायें दुर्बल पड़ी हों तो यह निश्चित है कि आप पराधीनता के पाश में जकड़े होंगे। अपनी उन्नति के लिए किसी और की गाँठ टटोल रहे होंगे। साँस्कृतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय दृष्टि से जो जातियाँ संगठित नहीं होती, उन्हें ही बाहरी आक्रमण सताते हैं। कैसी भी हों दुर्बलतायें ही नारकीय यन्त्रणाओं का कारण होती हैं। इसीलिये निर्बलता पाप है। पापी व्यक्ति की तरह निर्बलों को भी पृथ्वी पर सुख से जीने का अधिकार प्रकृति नहीं देती है।

ऐश्वर्य की इस संसार में कोई कभी नहीं सम्पदायें और विभूतियाँ पग-पग पर बिछी पड़ी हैं। सुखोपभोग के साधनों के लिए भटकना नहीं पड़ता। शर्त इतनी है कि आपके पास उन्हें प्राप्त करने और उपभोग करने का बल और शक्ति भी है अथवा नहीं। यदि आप निर्बल हैं तो आपके पास की रही सही सम्पत्ति और विभूतियाँ भी छिनने ही वाली हैं। इसीलिए श्रुति कहती है-”बैलमुपास्व” अर्थात् बल की उपासना करो। शक्ति के अभाव में ही पाप पनपते हैं, इसलिये यदि आप शक्तिशाली नहीं हैं तो कितना ही ईश्वर भक्त क्यों न हों, पाप की वृद्धि के आप भी भागीदार हैं।

चाहे अपनी भलाई के लिए अथवा संसार के कल्याण के लिए, शक्ति जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है, इसलिये सर्वप्रथम शक्ति का संचय करें। उसी से सुख-संपत्ति, ऐश्वर्य तथा पारलौकिक हित की रक्षा कर सकेंगे।


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