स्मरणशक्ति को कैसे प्रखर बनायें?

June 1989

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

मस्तिष्कीय क्षमताओं में ‘स्मरण शक्ति’ का बहुत बड़ा योगदान है। इसकी प्रखरता से मनुष्य अधिक विचारशील समझा जाता है ओर इसके ज्ञान की परिधि अधिक बड़ी होती जाती है। जबकि भुलक्कड़ लोग महत्वपूर्ण ज्ञान संचय से तो वंचित रहते ही हैं साथ ही दैनिक कामकाज में भी जो आवश्यक था उसे भी भूल जाते हैं और दैनन्दिन जीवन में घाटा उठाते और ठोकरें खाते देखे जाते हैं। विस्मृति को बहुधा कोई रोग मान लिया जाता है और उसके निवारण के लिए तरह-तरह के औषधि उपचारों का सिल-सिला चलता है। जो पत्तों का जल सींचने के समान ही सिद्ध होता है।

स्मरण शक्ति कितनों में ही जन्मजात रूप से असाधारण मात्रा में पाई जाती है। पर इसका अर्थ यह नहीं के दूसरे लोग यदि चाहें तो प्रयास करने पर उस विशेषता के अधिकारी नहीं बन सकते। जो काम एक व्यक्ति कर सका, जो एक को उपलब्ध हुआ वह सिद्धान्ततः दूसरे को भी मिल सकता है। सफलता, असफलता की न्यूनाधिकता की बात पुरुषार्थ पर ही टिकती है।

समझा जाता है कि बचपन में “स्मरण शक्ति” तीव्र होती है और पीछे आयु बढ़ने साथ-साथ मन्द होती जाती है, पर बात वस्तुतः ऐसी है नहीं। छोटी आयु में मस्तिष्क के ऊपर बोझ कम रहता है। विचारणीय प्रश्न कम रहते हैं, घटनाएँ, और समस्यायें भी उन दिनों थोड़ी ही रहती हैं। फलतः बोझ कम रहता है और जो सोचना, याद रखना है वह आसानी से निबट जाता है। किन्तु बड़े होने के साथ-साथ कार्य क्षेत्र बढ़ता जाता है, साथ ही स्मरण रखने, निष्कर्ष निकालने एवं निर्णय करने का भार भी। ऐसी दशा में बहुत काम करते रहने पर भी कुछ में अधूरापन रह जाना अप्रत्याशित नहीं। .... कुछ सही रीति से पूरा हो गया, उसकी ओर से ध्यान दिया नहीं गया, पर जो कमी रह गई .... को मस्तिष्क की कमजोरी या स्मरणशक्ति की कमी मान लिया गया। ऐसे ही प्रसंगों को लेकर दिमागी शक्ति घट जाने की बात सोच ली जाती है और चिन्ता होने लगती है। कारण है कि स्मृति की कमी का शिकायत वृद्ध ही नहीं .... भी करते पाये जाते हैं।

विस्मृति के तीन प्रमुख कारण है- (1) किसी बात को स्मरण रखे रहने के पूर्व इच्छा का .... होना (2) प्रस्तुत विषयों की पूरे .... समझने का प्रयत्न न करना (3) प्रसंगों में .... और उपेक्षा का भाव रहना, उनका महत्व स्वीकार न करना। यही है वह .... जिसमें देखी, सुनी बातों को उथले और आधे-अधूरे रूप में ग्रहण किया जाता है। रुचि की गहराई न होने से वे बातें चिन्तन के लिए काम करने वाले मस्तिष्कीय कोशों में गहराई तक प्रवेश नहीं करती और जल्दी ही विस्मरण के गर्त में गिरकर खो जाती हैं। इसके विपरीत जिन प्रसंगों में अपनी दिलचस्पी होती है, उन्हें ध्यानपूर्वक सुना, देखा और समझा जाता है। फलतः उनके मानस चित्र अधिक स्पष्ट बनते हैं और स्मृति पटल पर उनका अंकन इतना गहरा हो जाता है कि आवश्यकतानुसार उसे फिर पूर्ववत् देखा जा सके। यों समय बीतने के साथ-साथ सभी स्मृतियाँ धुँधली पड़ती जाती हैं, फिर भी जिन्हें मनोयोगपूर्वक अपनाया गया है, उनकी रेखायें अमिट न सही, चिरस्थायी तो बनी ही रहती है।

मस्तिष्क विज्ञान डा. डेविड हेराल्डफिक का कहना है कि “मानसिक तनाव भी मस्तिष्क की सक्रियता को शिथिल करता है”। उनके अनुसार एकाग्रता का जितना अधिक प्रयास किया जाता है, मानसिक तनाव उसी अनुपात में बढ़ना है और इसका प्रभाव स्मृति कोशों पर पड़ता है। .... अथवा भय की स्थिति में आया तनाव मस्तिष्क की समस्त सृजनात्मक प्रक्रियाओं को अवरुद्ध कर देता है।

स्मरण शक्ति की विशिष्ट क्षमता कोई दैवी वरदान या जन्मजात सौभाग्य नहीं है। वह अन्य शारीरिक क्षमताओं की तरह एक सामान्य सामर्थ्य है, जिसे प्रयत्न पूर्वक आसानी से बढ़ाया जा सकता है। यदि स्मरण रखने की पद्धति का ज्ञान हो और स्मरण तंत्र की संरचना को ध्यान में रखते हुए तदनुरूप घटनाओं को स्मरण रखने की विधि व्यवस्था बना ली जाय तो फिर विस्मृति की उतनी शिकायत न रहे, जैसी कि आमतौर से रहती है। दत्तचित्त होकर सावधानी एवं दिलचस्पी के साथ कोई बात सुनी या पढ़ी जाय तो वह न केवल भली प्रकार समझ में आ जायगी वरन् चिरकाल तक स्मृति पटल पर भी बनी रहेगी। विस्मृति के गर्त में चले जाने पर भी आवश्यकतानुसार उसे “रिकाल” करके टैप रिकार्ड की तरह चलाते हुए स्नायु कोशों को उत्तेजित कर फिर से सुना जा सकता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार यदि मनुष्य जागरूक रहे, ज्ञानवर्धन में सावधान और सतर्कता बरते तो 75 वर्ष की उम्र तक उसके मस्तिष्क में सामान्यतया 50 करोड़ खरब सूचनाएँ, जानकारियाँ आकृतियाँ आदि स्मृति पटल पर अंकित हो जाती हैं। इनमें से अधिकाँश समय बीत जाने पर मस्तिष्क के किसी कोने में जा छिपती हैं, परन्तु नष्ट कभी नहीं होती। जब कभी आवश्यकता पड़ती है अथवा सोचने समझने का काम मस्तिष्क के पास नहीं होता तो वह मानस पटल पर उभर आती हैं। प्रयत्न पूर्वक किसी भी विस्मृत बात को पुनः उभारा जा सकता है। प्रख्यात मस्तिष्क वेत्ता डा. विल्डर पेनफील्उ ने मस्तिष्क के कार्टिकल रीजन में एक ऐसी पट्टी का पता लगाया है जो स्मरणशक्ति का मूलभूत आधार है। उन्होंने उस स्थान में इलेक्ट्रॉड का स्पर्श कराकर वहाँ अंकित पुरानी स्मृतियों, घटनाओं और बातों को ज्यों का त्यों मानस पटल पर उभारने में सफलता पाई है। उनके अनुसार प्रत्येक बात हर समय याद नहीं रहती। विशेष प्रयत्न से उन्हें उभारा जा सकता है और कितनी ही पुरानी देखी-सुनी जा सोची बात फिर से उसी स्पष्टता के साथ सजग की जा सकती है।

मस्तिष्क विज्ञानी स्मरण शक्ति की आधार उस विद्युत धारा को मानते हैं जो सम्वाद वाहिनी तंत्रिकाओं में गतिशील रहती है। न केवल स्मृतियों का अंकन और पुनर्जागरण वरन् मस्तिष्कीय संरचना को अपना काम ठीक प्रकार से करने योग्य बनाये रहने में भी इसी विद्युत धारा की प्रधान भूमिका रहती है। नाड़ियों में रक्त परिभ्रमण की तरह तंत्रिका तंत्र में विद्युत धारा का भी प्रवाह सतत् होता रहता है। ध्यान धारणा का उपक्रम अपनाकर इस प्रवाह को न केवल यथावत् सक्रिय बनाये रखा जा सकता है, वरन् मस्तिष्कीय प्राण विद्युत का बिखराव रोका और उस तंत्र में ऐसी उत्तेजना उत्पन्न की जा सकती है जिसमें तंत्रिकाओं का मध्यवर्ती सहयोग प्रखर हो उठे और स्मरण शक्ति का अभाव अनुभव न हो। इसके लिए ध्यान अभ्यासों में से जो भी अपने लिए उपयुक्त हों उन्हें चुन लेना चाहिए। एकाग्रता बढ़ाने वाले सभी अभ्यास मनोबल बढ़ाते और स्मरण रखने की क्षमता को सतेज कर देते हैं।

मेधाशक्ति को बढ़ाने में प्राणायाम की साधना विशेष लाभकारी सिद्ध हुई। इलिनायस विश्व विद्यालय के अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिकों ने अपने शोध निष्कर्षों में बताया है कि मस्तिष्क की स्मृति क्षमता और आक्सीजन में घनिष्ट सम्बन्ध है। अपने प्रयोग परीक्षणों में उन्होंने देखा कि जिन बच्चों को हल्की साँस अर्थात् आक्सीजन की मात्रा लेने को कहा गया उनकी याददाश्त एवं मेधा में कमी पाई गई। उनके अनुसार आक्सीजन मस्तिष्कीय कोशिकाओं को सही तरीके से अपना काम करने के लिए ईंधन की तरह प्रयुक्त होता है। इसकी आपूर्ति में कमी प्रायः श्वास प्रश्वास की क्रिया को सही रीति से न संपन्न करने के कारण ही होती है। आयु बढ़ने के साथ रक्तवाही नलिकाओं की दीवारें कठोर पड़ जाती है और रक्त संचार उतनी अच्छी तरह नहीं हो पाता जितना कि बचपन में होता है। फलतः तंत्रिका कोशिकाओं को पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन न मिलने के कारण वे कमजोर होती जाती हैं और आयु के बढ़ने के साथ-साथ स्मरण शक्ति भी घटती जाती है। प्राणायाम उपचार द्वारा न केवल स्मरणशक्ति को दीर्घकाल तक बनाये रखा जा सकता है वरन् मस्तिष्क की समग्र क्षमता को उभारा और प्रखर बनाया जा सकता है। बुद्धिमत्ता समस्त स्मृतियों के मन्थन का ही नवनीत है जो वाणी, लेखनी किसी भी माध्यम से प्रकट हो सकती है।

ओरेगाँन विश्वविद्यालय के मेडीकल स्कूल के वैज्ञानिकों ने भी अपने विभिन्न खोज-परीक्षणों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि हल्की और उथली साँस से मस्तिष्कीय कोशिकाओँ की क्रियाशीलता और क्षमता घटती है। जिस अनुपात से आक्सीजन की आपूर्ति में कमी होगी उसी के अनुरूप मानसिक दक्षता में कमी आयेगी। इसके साथ यदि रक्त-अभिसरण में भी न्यूनता हो तो उसका प्रभाव मस्तिष्क पर विपरीत प्रतिक्रियायें उत्पन्न करेगा। इस कमी को प्राणायाम द्वारा दूर किया जा सकता है।

भगवान ने स्मृति की तरह विस्मृति को भी एक वरदान की तरह सृजा है। उपयोगी बातें याद रक्खें और आवश्यकता के समय सहायक बनें यह उत्तम है। इसी प्रकार यह भी ठीक है कि द्वेष-दुर्भाव, शोक-संताप की कटु स्मृतियाँ धुँधली हानि, वियोग आदि का स्थिति में मन जितना उद्विग्न होता है यदि उतना ही संताप बना रहे तो जीवन कठिन हो जाय। एक बार जिनसे मनोमालिन्य हो जाय फिर कभी सद्भाव बन ही न सके। मस्तिष्क में यों करोड़ों ग्रन्थों के समा सकने जितना स्मृति क्षेत्र है पर क्षण-क्षण में जो विविध जानकारियाँ मस्तिष्क को मिलती रहती हैं उनका विस्तार तो स्मृति क्षेत्र की तुलना में बहुत अधिक है। ऐसी दशा में पुराने को हटाकर ही नयों के लिए जगह मिल सकती है। रेलगाड़ी के मुसाफिर खानों में बैठे यात्री यदि वहाँ जमे बैठे रहें तो नये आगंतुकों को जगह कहाँ मिलेगी?

भुलक्कड़पन वस्तुतः कोई रोग नहीं, वरन् एक पाली हुई आर्क है, जो दिलचस्पी एवं एकाग्रता की कमी वाले क्षेत्रों को ही प्रभावित करती है। नोटबुक को साथी बना लेने, उसमें करने योग्य आवश्यक काम नोट करते रहने और उन पृष्ठों को सामने खुला रखने तथा बार-बार पलटते रहने से सभी महत्वपूर्ण बातें याद रक्खी जा सकती हैं। मेमोबुक के साथ जैसे सामान्य से उपचार से विस्मृति की वह कमी दूर हो सकती है जिसके कारण बहुत से लोग बुरी तरह घबराते और खर्चीले इलाज कराते फिरते हैं। न्यूयार्क स्थिति रोचेस्टर के स्ट्रोंग मेमोरियल हॉस्पीटल के वरिष्ठ चिकित्सा विज्ञान डा. डगन मैहिनी के अनुसार स्मरण शक्ति की अभिवृद्धि हेतु प्राचीन पद्धति “लोसी” बहुत उपयोगी है। इसी के आधार पर प्राचीन ग्रीक लेखक और वक्ता लम्बे-लम्बे उदाहरण दे सकने में सफल होते थे। “लोसी” लैटिन शब्द से बना है जिसका अर्थ स्थान एवं घटना विशेष से होता है। एक तरह से स्मृति को ताजा करने के लिए तन्मय होने की प्रक्रिया है।

स्मरण शक्ति मानवी मस्तिष्क की प्रमुख क्षमता है, जिससे व्यक्ति की आयु, बुद्धिमत्ता, ज्ञान, सामर्थ्य, विश्वसनीयता, मैत्री, ईमानदारी, आदि की भावनायें पूरी तरह प्रभावित होती हैं। किसी निर्धारित कार्य तथ्य, आँकड़े घटनाएँ, नाम, आकृतियाँ, चेहरे आदि विस्मृत होने का अभिप्राय व्यक्ति की अविश्वसनीयता को मान लिया जाता है। सुप्रसिद्ध मनीषी डेविड ह्यूम के अनुसार किसी की स्मृति-क्षमता उसके सुगढ़ व्यक्तित्व का परिचायक है। अतः इस तंत्र को तरोताजा रखना आवश्यक है।

जिस प्रकार व्यायाम-भोजन आदि से शरीर को सुदृढ़ बनाया जाता है, उसी प्रकार मस्तिष्कीय प्रखरता स्मृति क्षमता की भी अभ्यास द्वारा अभिवृद्धि की जा सकती है। असावधानी, उपेक्षा और अनुत्साह की मनःस्थिति ही विस्मृति का प्रमुख कारण है। सतत् स्वाध्याय प्राणायाम एवं ध्यान धारणा के उपचार उपक्रमों का आश्रय लेने से अनेक लाभों में जहाँ आध्यात्मिक लाभ मिलता है वहीं इसके अतिरिक्त चिन्तन तंत्र पर छाई शिथिलता-मलीनता भी दूर होती है। साथ ही विस्मृति की शिकायत नहीं पनपने पाती।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118