देवत्व पर विजय

August 1980

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

एक बहुत भला आदमी था। उसकी भलमनसाहत से उस पर देवदू प्रसनन होय गये। उन्होने उससे कोई सिद्धि या वरदार माँगने को कहा।

तब उस भेद आदमी ने कहा -"आप मुझ पर वास्तव में ही कृपा करना चाहते हैं तो यह वरदान दीजिए कि मुससे सदा किसी न किसी की भलाई होती रहे, परन्तु मुझे उसका पता न लगे।"

'देवता हैरान थे अन्ततः उनको एक उपाय सूझा और उसको 'तथास्तु' ऐसा ही हो, कहकर वरदान दे दिया। देवताओं ने यह वरदान दे दिया कि वह जहाँ कहीं भी जाय उसके पीछे की छाया में दूसरों का हित करने वाली अद्भुत शक्ति रहे।'

अब तो वह व्यक्ति जिधर भी जाता तो उसकी छाया जली घास पर पड़ जाती तो वह हरी हो जाती, किसी रोगी पर पड़ जाती तो वह रोग मुक्त हो जाता, किसी मन्दमति पर पड़ जाती तो वह बुद्धिवान हो जाता, किसी दरिद्र पर पड़ जाती तो वह ऐर्श्वयवान हो जाता। परन्तु उस व्यक्ति को कभी इसका पता न चला। देवता खुश थे और वह आदमी भी प्रसन्न।

यदि उस व्यक्ति को इस बात का पता चल जाता तो उसमें अहंकार का अंकुर फूटकर उसकी भलमनसाहत का निवाश कर डालता। दूसरों को भी उसकी इस अलौकिक सामर्थ्य का ज्ञान न था। यदि दूसरे लोगों को भी इसका पता चल जाता तो उसकी ख्याति हो जाती। उसके चारों ओर ईर्ष्यालु लोग इकट्टे होकर उसे परेशान करते।

उस आदमी के मुनष्यत्व ने देवत्व पर विजय प्राप्त कर ली थी।


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles