अमेरिका में कुछ ऐसी झीले है जिनका पानी पूरी तरह साबुन बन गया है। इनमें से अधिकाँश झीलें 40-40 फुट गहरी हैं एक झील तो 80 वर्ग एकड़ भूमि में फैली हुई हैं
वैज्ञानिकों ने इन झीलों का अध्ययन कर बताया कि उनमें जमा झार का भूमिगत तेल से सम्पक्र होने के कारण पानी साबुन बन गया। यह क्षेत्र तेल वाले रहे होगे और कभी भमि विस्फोट क कारण तेल उपर आकर झार से मिल गया होगाँ इसी से सारी झीलें साबुन बन गई है।
कल कारखानों की विराट् जनसंख्या और उनसे निस्रत होने वाले दूषित रसायनों की ऐसी ही प्रतिक्रिया के फलस्वरुप एक दिन वह भी आ सकता है कि कोई नदी विष नदी बन जाये, तालाब रासायनिक खाद और समुद्र समूचा का समूचा "सर्फ" बन सकता है। पानी राशन से मिलने लगेगा वह भी आधा लिटर या एक लिटर प्रति सप्ताह। विज्ञान और आधुनिक सभ्यता के समर्थन के इस मूल्य को चुकाने के लिए सभी को तैयार रहना चाहिए। जल प्रदूषण इसी शताब्दी में इस स्थिति तक पहुँचने वाला है।
टोरंटों कनाडा के चोरों ने सोने, चाँदी में हाथ लगा कर अपना समय नष्ट करने की अपेक्षा अब कीड़ों की चोरी का लाभदायक धन्धा अपनाया हैं टोरटो की एक दुकान मछली पकड़ने कासामान बेचती है, गत माह उस दुकान से 42 हजार डालर अर्थात् पौने तीन लाख मूल्य के कीडे़ चोरी चले गये। दूसरे नगरों से भी लगभग 1 लाख डालर मूल्य के कीड़ों की चोरी हुई।
यह पंक्तियाँ पढ़ने तक पाठक इसे हास्यास्पद समाचार समझ रहे होगे, पर यह उस दुःखद स्थिति की ओर संकेत है जिसका निर्माण आज का सभ्य मनुष्य प्रकृति को नष्ट करके कर रहा है। वायु प्रदूष्धण, विकिरण तथा भारी संया में जंगलों के काटने आदि के कारण ऐसे कीड़े जो कृषि और उद्यानिकी के प्राण है, मिट्टी को उनसे पोषण भी मिलता है और विजातीय कीड़ों को जो नष्ट भी करते रहते है, या तो पूरी तरह समाप्त हो गये है या अपनी सुरक्षा के लिए जमीन के अन्दर चले गये है। अब ऐसे कीड़े दुकानों में बिकने लगे है, समर्थ किसान भारी मुद्राअदा कर उन्हे खरीदते है और अपनी उपज बढ़ाने या फसल के शत्रुओं को नष्ट करने में सहायता लेते है। इनकी वर्तमान उपयोगिता का पता इसी से चलता है कि अब उनकी विधिवत् चोरी तक हो रही है।
प्रश्न चोरी रुकने या नहीं रुकने का नही, वरन् यह है कि आद्योगिकी का, अस्त्र-शस्त्र के विस्तार का, विज्ञान की प्रगति का व्यामोह बना रहा तो इस शस्य-श्यामला वसुन्धरा का क्या होगा? स्पष्ट है उसे बाँझ बनाने का पाप पूरी तरह तथाकथित सम्यता को लगेगा जिसके पीछे आज का युग पागल हुआ पड़ा है।