तेज आँधी और पानी ने एक-दूसरे से मानो होड़-सी कर ली थी। रह रहकर बिजली कड़क रही थी। ठण्डी हवा वदन को सूत्र सा किये दे रही थी। तभी होटल के अन्दर थर-थर काँपते किसी दम्पत्ति ने प्रवेश किया और कमरे की माँग कीं
‘पर यहाँ तो पूरा होटल भरा हुआ है, क्षमा कीजियेगा।’ बैरे ने विनम्रतापूर्व कहा।
निराशा दम्पत्ति कहने लगे, ‘हमें पता होता कि फिलडिल्फिया के सभी होटल इतने भरे रहते है तो पहले से ही स्थान रिजर्व करा लेते। हर होटल में यही उत्तर हमें मिला है। अब हम जायें भी तो जायें कहाँ?
युवक बोला-’इस तूफान और सर्दी में बाहर आप कहाँ भटकेगें? यदि आप बुरा न माने तो मेरे कमरे में ठहर सकते है।’
‘और तुम कहाँ रहोगे? दम्पती ने पूछा।
‘मेरी कोई बात नहीं। मैं तो होटल का बैरा हूँ। रात में मुझे जगने की आदत है। कहीं भी रात बिता दूँगा।’ युवक ने कहा और दम्पत्ति को अपने कमरे में ले जाकर ठहरा दिया। उनकी सुख-सुविधा की सारी सामग्री इकट्ठी करके कड़ाके की उस सर्दी में स्वयं कष्ट सहते वह बाहर निकल गया। बरामदे में पड़ी एक मेज पर उसने अपना बिस्तर लगाया और तूफान के झोंकों में रात भर सोने का प्रयास करता रहा।
सुबह जब तूफान और वर्षा कुछ कम हुई तो दम्पत्ति ने उस युवक को काफी धनराशि देनी चाही। पर गरीब बैरे ने धन लेने से स्पष्ट इन्कार कर दिया और बोला-’आप उस समय आपत्ति में पड़े थे और क हीं आपको स्थान न मिलता इसलिये मैंने आपकी सहायता की थी। यह मेरा धर्म था। धन प्राप्ति की इच्छा से मैंने आपकी सहायता नहीं की। इसलिये मैं पैसे नहीं ले सकता।’ दम्पत्ति लाचार होकर होटल से चले गये।
लगभग दो वर्ष बाद उस कर्मचारी को न्यूर्याक का एक टिकिट और एक पत्र मिला, बुलाने वाले व्यक्ति न्यूयाक्र के सुप्रसिद्ध धनाड्य विलियम थे। युवक जब न्यूयाक्र पहुँचा तो विलियम वाल्डोफ ने उसका जोरदार स्वागत किया। एक शानदार होटल में उसे ले जाकर वे बोले-’यह होटल विशेष रुप से मैंनेआपके लिये बनवाया है। आज से आप इसके मैंनेजर है।’
‘पर मुझ में तो इतनी योग्यता नहीं।’ युवक ने आर्श्चयचकित होते हुए कहा।’
‘आप में सज्जनता और परोपकार की भावना तो है। इस तरह के कार्यां के लिये वही सबसे बड़ी योग्यता है।’ धनिक ने युवक को गले से लगाते हुए कहा।