वहाँ मूँगफली के छिलके पडे़ हुए हैं (kahani)

August 1980

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अध्यापक जब कक्षा में आये तो उन्होंने पाया कि वहाँ मूँगफली के छिलके पडे़ हुए हैं। उन्होंने गुस्से में भर कर पूछा-’किसने की है यह गन्दगी?’

किसी भी छात्र की बोलने की हिम्मत न हुई। सभी को पता था कि क्रोधित होने पर वे बेंत से मारते है। कुछ पल की चुप्पी के बाद अध्यापक बोले।

‘ठीक है, कोई नहीं बोलता तो मैं सभी की बेंत से पिटाई करता हूँ।’ और उन्होंने सबसे आगे वाले छात्र को हथेली फैलाने का इशारा किया। जैसे ही उन्होंने मारने के लिए बेंत उठाया, कक्षा का एक छात्र बोल पड़ा, ‘गुरुजी रुकिये।’ उठा हुआ बेंत सहसा रुक गया। सभी की निगाहें उस छात्र पर जम गयी।

छात्र कह रहा था-’गुरुजी! दोषी मैं हूँ। मैंने मूँगफली के छिलके डाले है। दण्ड मुझे दीजिये।’

‘पर तुम तो ऐसा अपराध करते नहीं’ आर्श्चयचकित होकर कक्षा के उस मेधावी छात्र से गुरु ने पूछा।

‘जैसे ही मैं इन छिलकों को फेंक रहा था कि घण्टी बज गयी और आप गये।’ छात्र ने अपराध का कारण स्पष्ट किया।

‘तो जाओं अब इन छिलकों को बाहर फेंक आओ।’ अध्यापक ने कहा।

कक्षा के सभी छात्रों ने मन-ही-मन इस सत्यवादिता के लिए धन्यवाद दिया क्योंकि इसी कारण वे सभी बेंत खाने से बच गये थे।

गुरुजी भी कह रहे थे-’तुमने मार का भी भय छोड़कर सत्य बोला है। इसलिये अब तुम्हें किसी प्रकार का दण्ड नहीं मिलेगा।’

यह बाल गंगाधर तिलक थे जिनकी यह सत्यनिष्ठा उन्हें आज भी जन श्रद्धा का पात्र बनाये हुए है।


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