यंत्र मानवों की गुलामी के लिए तैयार रहें

August 1980

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विज्ञान ने मनुष्य को अगणित सुविधा-साधनों से सम्पन्न बनाया है। पूर्वकाल में जीवन जितना जटिल था, उतनी जटिलताएँ अब नहीं रही और वर्षों में सम्पन्न होन वाले काम अब मिनटों, सैकिण्डों में होने लगे हैं। यात्रा, यातायात, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, सम्पक्र और ऐसे ही अन्यान्य क्षेत्रों में विज्ञान ने मनुष्य को ऐसे-ऐसे अवदान दिए है कि उसकी दुनिया सिमट कर न केवल एक मुहल्ले जैसी बन गई है, बल्कि जिन सुविधाओं की पहले कल्पना भर की जाती थी, वे अब सत्य -साकार होने लगी है।

यान्त्रिक प्रगति ने मनुष्य जीवन की जटिलता को हल किया है और उसके श्रम को सरल बनाया है। प्रगति का यह एक पहलू है। इसका एक दूसरा पहलू भी हैं पहला पक्ष जितना उज्जवल है, दूसरा पक्ष उतना ही अन्धकारपूर्ण है। दूसरा पहलू यह है कि मशीने निरन्तर मनुष्य का श्रम छीनती जा रही है और एक तरह से मनुष्य को बेकार बनाती चली जा रही है। इसका एक छोटा-सा उदाहरण तो यही है कि अब पच्चीस-तीस साल पहले लोग दो-चार मील की यात्रा यों ही पैदल चलते हुए ही पूरी कर लेते थें वाहनों की सुविधा जब सरलता से उपलब्ध होने लगी तो मनुष्य चलने के मामले में इतना आलसी होता गया कि अब एकाध किलोमीटर दूर जाना हो तो भी रिक्शा, ताँगा या बस, स्कूटर का इन्तजार किया जाता हैं।

पिछले दिनों सुविधा साधनों की श्रृंखला में एक और कड़ी जुड़ी है वह है यन्त्र मानव की। अब तक कम्प्यूटर से हिसाब-किताब का काम लिया जाता था, लिखने-पढ़ने के लिए भी विविध उपकरण तैयार किये जा चुके है, परन्तु जब से यन्त्र मानव का निर्माण हुआ है तब से मनुष्य सभ्यता के भविष्य को लेकर अनेक प्रश्न चिन्ह उठाए जाने लगे है। प्रसिद्ध अँग्रेज समाज शास्त्री पी. क्लिएटर ने तो इन यन्त्र मानवों के विकास को परमाणु संकट से भी अधिक गम्भीर बताया है। नोर्बट वाइनेर ने लिखा है परमाणु बमों और आणविक अस्त्रों के खतरों के प्रति लोगों के जागरुक होने से भी ज्यादा हमें इस बात के लिए सतक्र हो जाना चाहिए कि मनुष्य को बुरी तरह प्रभावित करने वाली एक और शक्ति गम्भीर चुनौती के रुप में सामने प्रस्तुत हो रही है।

क्या है यन्त्र माव? उनसे मनुष्य को किस प्रकार के खतरे है? यह विचारणीय है। पिछलें तीस वर्षों में कम्प्यूटरों का तेजी से विकास हुआ है। इन्हें दिमागी यन्त्र या बौद्धिक मशीने कहा जा सकता है। इस तकनीक का विकास मुख्य रुप से दूसरे महायुद्ध के बाद से हुआ है और विज्ञान की एक नई ही शाखा अस्तित्व में आई है। विज्ञान की इस शाखा को ‘साइबरनेटिक्स’ कहते है। इसी शाखा के वैज्ञानिकों ने यन्त्र मानवों का निर्माण किया हैं। दूसरे महायुद्ध के समय से ही इस प्रकार के यन्त्र मानवों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए हार्वर्ड के प्रोफेसर होवोर्ड ऐकेन ने ‘माक्रवन’ नामक कम्प्यूटर का निर्माण किया था। इस कम्प्यूटर का भार लगभग साढे़ चार मैट्रिक टन था और इसमें करीब 80 यन्त्रों को 800 किलोमीटर लम्बे तारों से जोड़ा गया था। यह कम्प्यूटर एक चौथाई सैकिण्ड में जोड़ देता था और इतनी बड़ी संख्या का गुणा छह सैकिण्ड में कर देता था।

आरम्भ में इसी तरह के भारी भरकम कम्प्यूटर बनाये गए। परन्तु पाँचवें और छठवें दशक में न केवल छोटे कम्प्यूटर बना पाना सम्भव हो गया वरन् उनकी कार्य क्षमता भी कई गुना बढ़ गई। पहली बार जो कम्प्यूटर बने वे आकर में बहुत बडे़ और संरचना की दृष्टि से अब की अपेक्षा बहुत जटिल थे। अब जबकि उनको निर्माण विधि में काफी सुधार हुआ है तो पहले की अपेक्षा वे सुविधाजनक और सरल हो गये है। अब तो ऐसे कम्प्यूटर बनाये जाने लगे है जो एक सैकिण्ड में कई अरब संख्याओं का हिसाब-किताब लगा सकते है। किन्तु अभी भी यह नहीं कहा जा सकता कि कम्प्यूटरों का विकास चरम स्थिति में पहुँच गया है, इन दिनों इलेक्ट्राँनिक पद्धति से कम्प्यूटर बनाये जाते है। आगे चलकर लेसर किरणों का उपयोग कम्प्यूटरों के निर्माण में किये जाने की बात सोची जा रही है। अब तो ऐसे कम्प्यूटर बनने लगे है, जिन्हें रेडियों और ट्रान्जिस्टर सेट की तरह आसानी से कहीं भी लाया ले जाया जा सकता है। उनकी कार्य क्षमता में भविष्य में और भी अधिक प्रगति होने की सम्भावना है।

जिन यन्त्र मानवों की चर्चा ऊपर की पंक्तियों में की गई है व और कुछ नहीं कम्प्यूटर चालित मशीन ही है वे सारे काम कर सकेगे जिन्हे मनुष्य करता है। कम्प्यूटरों का विकास मानव मस्तिष्क के अनुकरण करने की दिशा में होगा। इनमें स्मृति कोशों में अधिक जानकारी संचित रखने में और अधिक तेजी से सोचने में, जटिलतम गणनाएँ करने में समर्थ होगें। इनमें अब तक विकसित समाज, ज्ञान-विज्ञान का समावेश करना भी सम्भव हो जायेगा। अब तक ऐसे कम्प्यूटर भी अस्तित्व में आ चुके है जो एक भाषा का दूसरी भाषा में अनुवाद कर लेते है। पिछले दिनों डेनमाक्र में विश्वभर के कम्प्यूटर विशेषज्ञों का एक सम्मेलन हुआ, जिसमें इन बौद्धिक यन्त्रों की भावी सम्वेदनाओं के बारे में पूर्वानुमान प्रस्तुत किये गये। विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तुत पूर्वानुमानों के अनुसार सन् 2000 तक सभी प्रमुख उद्योग कम्प्यूटर की नियन्त्रण प्रक्रिया द्वारा संचालित होगे। बैंकों और दफ्तरों का सारा काम-काज कम्प्यूटरों द्वारा ही सम्पन्न किया जायगा। तब अधिकाँश चिकित्सक रोग निदान के लिए भी कम्प्यूटरों की मदद लेगे। फिर मनुष्य को उतना श्रम करने की आवश्यकता नहीं रहेगी, जितना कि वह आज करता हैं।

यन्त्र मानव जिन्हें ‘रोबोट’ कहा जता है, इन्हीं कम्प्यूटरों की अगली कड़ी है। कुछ समय पहले अमेरिका के एक कम्प्यूटर वैज्ञानिक बेनस्कोर ने ऐसा रोबोट बनाया है जो मनुष्यों की तरह काम करता हैं बेन स्कोर ने इन यन्त्र मानवों का नाम अराँक रखा है। अराँक क्या-क्या काम कर सकते है इसकी संक्षिप्त जनकारी इस प्रकार है कि वे एक बटन दबाने पर रसोईघर में जाते है और वहाँ से खाना उठा-उठाकर एक टे्र में रखते है और उस टे्र को लेकर धीरे-धीरे खाने की मेज तक जाते है। खाने की मेज पर ये रोबोट फिर तरकीब से मेहमानों के लिए खाना सजा देते है। यही नहीं आदेश देने पर वह कूड़ेदान तक जाता है, उसे उठाता है और बाहर जाकर कूड़ा ले जाने वाली गाड़ी में फेंक आता है। यही न ही अराँक कुत्तो को घुमाने, पालतू जानवरों को खिलाने का काम भी करते है।

उल्लेखनीय है कि चन्द्रतल पर पहलीबार जो चन्द्रयान उतरा था, मनुष्य के वहाँ पहुँचने से पहले उसका संचालन रोबोट ने ही किया था और मनुष्य के स्थान पर उन्हें ही चन्द्रतल पर उतारा गया है। अब रोबोटों के निर्माण में जिस तेजी से विकास हो रहा है और वे जो-जो काम सम्पन्न कर सकते है, उन्हें लेकर तरह-तरह के प्रश्न उठाये जा रहे है। कुछ समय पहले चेक लेखक कारेल चापेक ने एक पुस्तक लिखी थी ‘रोस्सुम के रोबोट’ उस समय तक रोबोटो का निर्माण न हुआ था और न वैसी कल्पना ही की जा रही थी। परन्तु पुस्तक में जो तथ्य दिये गए है, रोबोटों की जो विशेषताएँ बताई गई है वे अब तैयार किये जा रहे रोबोटों से अक्षरशः मेल खाती है।

पुस्तक कहानी शैली में लिखी गई है। उसके कथानक का नायक है रोस्सुम नामक वैज्ञानिक जो अपने इन्जीनियर पुत्र की सहायता से यन्त्र मानवों के निर्माण की एक फैक्टी खेलता हैं। ये रोबोट मनुष्यों के समान बुद्धि सम्पन्न, बलशाली और स्मरण शक्ति सम्पन्न होते है। दस वर्षों के भीतर रोस्सुम के सार्वभौमिक रोबोट इतना अनाज पैदा कर लेते है, इतने कपडें़ तैयार कर लेते है, सब कुछ इतना अधिक उत्पन्न करते है कि चीजें लगभग मुफ्त मिलने लगती है। सारा काम यन्त्र मानव करते है और प्रत्येक व्यक्ति चिन्ता मुक्त होकर बेफिक्र जीवन व्यतीत करेगा, किसी को अधिक श्रम नहीं करना पडे़गा। इन रोबोटो का उत्पादन इतने व्यापक पैमाने पर होने लगेगा कि चारों ओर उन्हीं का साम्राज्य व्याप्त दिखाई देगा। कारेल चापेक ने कल्पना की है कि कुछ ऐसे यन्त्र मानव भी उत्पन्न हो सकते है जिनमें अतिरिक्त मानव विशेषताएँ होगी, जैसे पीड़ा को अनुभव करने की सोचने समझने की। इन विशेषताओं से सम्पन्न यन्त्र मानव सभी रोबोटो को मनुष्य के विरुद्ध संगठित करेगें और यह घोषणा करेगे कि हम मनुष्य से अधिक विकसित है, अधिक बलशाली है और मनुष्य हम पर निर्भर है।

रोबोटों में जब यह धारणा उत्पन्न होगी कि वे मनुष्य से अधिक उन्नत है और वास्तव में ऐसा होगा भी सही तो मनुष्य उनका गुलाम हो जायगा। मनुष्य की श्रम करने की आदत तो रहेगी नहीं, वह आलसी हो जायेगा। इसलिए स्वाभाविक होगा कि वह रोबोटो को नियन्त्रण में नहीं रख सकेगा और अन्ततः रोबोट विद्रोह कर देगे। वे धरती पर मनुष्य के अस्तित्व को आवश्यक नहीं समझेगे और अपने निर्माताओं को या तो नष्ट कर डालेगे या उसे अपना गुलाम बना लेगे।

प्रसिद्ध विज्ञान कथा लेखक बियान आलिस ने कभी इसी प्रकार की कल्पना की है। उनकी कहानी में सभी आवश्यक काम रोबोटो द्वारा सम्पन्न होते है। खेती बाड़ी का काम भी इन्हीं यन्त्र मानवों के जिम्मे है। रोबोटों द्वारा मनुष्य के विरुद्ध किये गए विद्रोह के परिणाम स्वरुप जमीन उपजाउ बन गई है। उन्हे खाने-पीने की आवश्यकता तो है नहीं इसलिए वे अनाज पैदा न कर मनुष्य को निराश और बलहीन कर देते है।

यन्त्र मानवों के सम्बन्ध में ये कल्पनाए भले ही अतिरंजित हो किन्तु आज जो अतिरंजना लगती है, वह कल सम्भव हो जाए तो कोई आर्श्चय नहीं है। यहाँ तक तो सोचा जाने ही लगा है कि युद्ध में सैनिकों के स्थान पर रोबोटो का ही प्रयोग किया जाये। इन यन्त्रों मानवों में ऐसी काई विशेषता तो पैदा की जी जायेगी जिसेस वे साममियक मोर्चां पर परिस्थतियों के अनुसार निर्णय ले सके और उन्हें क्रियान्वित कर सके।

कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यन्त्र मानव कितने ही विकसित हो जाएँ, अन्ततः वे रहेगे मनुष्य पर ही निर्भर आइजक एसिमोव नामक एक अमेरिकी, विज्ञान कथा लेखक के अनुसार यह सम्भव नहीं है कि कोई रोबोट किसी आदमी को क्षति पहुँचाये या बिगड़ कर कोई नुकसान करे ऐसी सम्भावना लगभग नहीं के बराबर है। वे किसी भी स्थिति में अपने स्वामियों की आज्ञा का पालन करेगे। इतना अवश्य हो सकता है कि वे अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष करने लगे।

यदि ऐसा भी सम्भाव हो जाए तो भी उससे मनुष्य जाति पर संकट की सम्भावनाएँ कम नहीं होती। यह बात और हे कि संकट का स्वरुप बदल जाये। वह संकट किस प्रकार का हो सकता है? इस सम्बन्ध में निश्चित और स्पष्ट कल्पना कुछ नहीं की जा सकती। अणु बम का आविष्कार करते समय किसने यह सोचा होगा कि यह निर्माण मनुष्य जाति के लिए अस्तित्व का संकट उत्पन्न कर देगा? यन्त्र मानवों अथवा रोबोटो का निर्माण भले ही सुविधा साधनों के विकास की दृष्टिगत रखते हुए किया जा रहा है, परन्तु इस बात की क्या गारन्टी हे कि इनका दुरुपयोग नहीं होग? उदाहरण के लिए यन्त्र मानवों का सैनिक उद्देश्यों के लिए प्रयोग युद्ध की विभीषिका को बढ़ाने वाला ही सिद्ध होगा। अभी तो युद्ध में लड़ने वाले सैनिक अपने बचाव को ध्यान में रखते हुए आक्रमण और प्रत्याक्रमण करते है। यन्त्र मानव तो अपने मालिक की इच्छाओं, आदेशों का पालन करेगे। उन्हें न अपने बचाव की चिन्ता होगी और न अपनी सुरक्षा की।

सैनिक प्रयोजनों के लिए, बलहीनों पर नियन्त्रण रखने के लिए यन्त्र मानवों का उपयोग अन्ततः थोड़े से लोगों के हाथों में समूची मानव जाति का भविष्य सौंप देगें। यह तो निश्चित है। जैसी कि कई वैज्ञानिक कल्पना करते है। यन्त्रों मानवों में सोचने समझने की क्षमता विकसित हो सकती है और वे आजाद होकर मनुष्य को अपना दास बना सकते है, यह कल्पना यहद साकार हो गई तब तो मनुष्य जाति स्वयं ही अपनी सामूहिक दासता को नियमन्त्रित कर रही है, यह कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए।


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