शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि संयाति नवानि देही

August 1980

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भौतिक विज्ञान के सिद्धान्तानुसार पदार्थ का कभी नाश नहीं होता। विभिन्न रुपों में वह परिवर्तित होता रहता है उसे उर्जा में और उर्जा को पुनः दृश्य पदार्थ में रुपान्तरित किया जा सकता है। प्रकटीकरण को पदार्थों का पुनर्जन्म और अदृश्य होने को मुत्यु के नाम से सम्बोधित किया जा सकता है। वस्तु ही नहीं जीवों में भी यह रुपान्तरण की प्रक्रिया चलती रहती है। जराजीर्ण काया को छोड़कर चेतना नये कलेवर में अपने कर्मों के अनुसार प्रकट करती है। पुनर्जन्म के सनातन सिद्धान्त को वैज्ञानिक विकास के आरम्भिक चरण में कुछ अपरिपक्व मस्तिष्क वाले व्यक्ति ने इन्कार करने का प्रयत्न किया। पर वर्तमान के नये वैज्ञानिक एवं परामनोवैज्ञानिक शोध तक्र एवं तथ्यों के आधार पर पुनर्जन्म को एक स्वर से स्वीकार करने लगे है। समय-समय पर मिलने वाले घटनाओं के प्रमाण भी इस तथ्य की पुष्टि करते है।

कुछ वर्ष पूर्व नागपुर के एक स्थानीय अस्पताल में श्रीमति उत्तरा हुद्दार को चर्म रोग की चिकित्सा के लिये भरती किया गया, लेकिन वही से उन्हें विचित्र दौरे आने शुरु हुए। पहले तो वे दस-पन्द्रह मिनट तक ही उस अवस्था में रहती थीं लेकिन वाद में वही स्थिति दस-पन्द्रह दिनों तक के लिए रहने लगी। अँगे्रजी और मराठी के अलावा कोई अन्य भाषा न तो वे और न उनके परिवार में ही कोई जानता था। लेकिन उक्त अवधि में वे धारा प्रवाह बंगला बोलते हुए अपने को ‘सप्तग्राम की निवासी ‘शारदा’ नामक महिला बताती थी। यों तो ये दौरे उन्हें आकस्मिक रुप से ही आते थे लेकिन एकबार जब उनके भाई कैमरे से उनकी तस्वीर लेने जा रहे थे, वह अचानक चीखते-चिल्लाते हुए भागने लगी। पूछने पर उनने बताया मेरा भाई गले में काला साँप लटकाये मुझे मारने आ रहा हैं। बड़ी मुश्किल से उन्हें पकड़ा जा सका।

श्रीमति उत्तरा हृद्दार 37 वर्ष की आकर्षक सौम्य और सुशिक्षित गृहिणी थीं तथा नागपुर की एक स्थानीय युनिवर्सिटी में मराठी की व्याख्याता थीं

परिवार वाले किकर्तव्यविमूढ़ थे। आखिर इस लाइलाज मर्ज से परेशान होकर उन्होंने ‘मनश्चिकित्सकों’ की शरण लीं। स्थानीय अस्पताल के डाँक्टरों ने इस केस का अध्ययन वर्जीनिया के परामनोवैज्ञानिक डाँ. स्टीवेन्सन को सौंपा दिया। इस कार्य में डाँ. स्टीवेसन के साथ कलकत्ते के दो अन्य परामनोवैज्ञानिक डाँ. आर. के. सिन्हा तथा प्रो. विपिन्द्र पाल भी कार्यरत थे। इन तीनों ने मिलकर उत्तरा हुद्दार की केस हिस्ट्री तैयार कीं जब-जब दौरा पड़ता और उत्तरा अपनी पिछली कहानी दुहराती, डाँक्टर उसे टेपरिकार्ड कर लेते। उत्तरा के व्यवहार का मनोवैज्ञानिक अध्ययन भी किया गयाँ

अनेक प्रयोगों के बाद उत्तरा के पिछले जन्म अर्थात् शारदा के जीवन की कहानी का ‘ले आउट-सा’ तैयार हुँआ।

शारदा का जन्म सप्तग्राम (बंगाल) में लगभग 150 वर्ष पूर्व हुआ था। उसकी माँ शारदा बहुत पहले ही मर चुकी थी। इसलिए शारदा का पालन-पोषण उसकी मौसी ने किया था। उसके पिता बृजनाथ चट्टोपाध्याय एक प्रसिद्ध कंकाली मन्दिर के प्रधान पुजारी थे। सोमनाथ और यतीन्द्रनाथ उनके दो छोटे भाई थे। शारदा के पति विश्वनाथ एक वनस्पति विशेषज्ञ थे।

शारदा माँ। बनने के दो अवसर खो चुकी थी। तीसरी बार प्रसवकाल से लगभग 3 माह पूर्व वह एक दिन आँगन में बैठी धान साफ कर रही थी। पास की झाड़ियों से निकल कर एक नाग ने उसे दंश लिया। शोर सुनकर काफी लोग इकट्ठे हो गये। शारदा के पति को भी सूचना दी गयी जो खुद भी किसी सर्प-दशित व्यक्ति के इलाज के लिए पड़ौस के गाँव में गये हुए थे। समाचार सुनते ही वे घोड़े पर दौडे़ चले आये। शारदा अपने प्रलापों में भी कहा करती थी देखो मेरे पति घोड़े पर चढ़े चले आ रहे है। लेकिन तब तक जहर काफी फैल चुका था, अतः शारदा बचायी नहीं जा सकी।

शारदा द्वारा बताये गए तथ्यों की खोज करने पर सारी बातें सही पाई पायी। आत्मा की खोज विषय पर शोध कार्य करने वाले डाँ. स्टीवेन्सन ने अपनी शोध यात्रा में विश्वभर से इस प्रकार के 600 प्रामाणिक घटनाएँ एकत्रित की है। इनमें 170 प्रमाण अकेले भारत से प्राप्त हुए है। डाँ. स्टीवेन्सन के अनुसार जिनकी मृत्यृ किसी उत्तेजनात्मक, आवेशग्रस्त मनः स्थिति में हुई हो, उनमें पिछले जन्म की स्मृति, अधिक स्पष्ट रहती है। दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या, प्रतिशोध, कातरता, मोहग्रस्तता, अतृप्ति का विक्षुब्ध घटनाक्रम प्राणी की चेतना पर गहरा प्रभाव डालता है और वे उद्वेग अगले जन्म में भी स्मृति पटल पर उभरते रहते है। जिस व्यक्ति से अधिक प्यार या द्वेष रहा हो, उसका विशेष रुप से स्मरण बना रहता हैं

डाँ. स्टीवेन्सन के शोध रिकार्ड में एक पाँच वर्षीय लड़की की घटना है जो हिन्दी भाषी परिवार में जन्म लेकर भी बंगला गीत गाती और उसी शैली में नृत्य करती थी। जबकि कोई बंगाली उसके घर परिवार के समीप नहीं था। उसने अपना पूर्वजीवन सिलहट से संबंधित बताया। इस जन्म में वह जबलपुर में पैदा हुई, लेकिन उसकी पूर्व जन्म की स्मृतियाँ 95 प्रतिशत सही साबित हुई।

इग्लैण्ड के नार्थम्बर लैंड के श्री पोलक की दो लड़कियाँ सड़क पर मोटर की चपेट में आकर मर गयी। बड़ी लड़की ‘जोआना’ 11 वर्ष की थी तथा छोटी जैक्लन 6 वर्ष की।

दुर्घटना के कुछ समय बाद श्रीमति पोलक गर्भवती हुई तो उन्हें न जाने क्यों हमेशा यह महसूस होता थाकि उनके गर्भ में जुड़वा बच्चे हैं डाँक्टरी जाँच कराने पर उनकी धारणा बहम साबित हुईं लेकिन दाद में जन्म दो लड़कियों का ही हुआ तथा उनमें एक का नाम गिलियन और दूसरी का जेनिफर रखा गया। ये अपने पूर्वजन्म के सभी चिन्हों को अपने शरीर पर धारण करके ही जन्मी थी। इन दोनों को अपनी मृत बहनों के बारें में कुछ भी नहीं बताया गया था लेकिन वे अपने पूर्वजन्म के घटनाओं की आपस में चर्चा करती हुई पाई गई। समयानुसार उन्होने अपने पूर्वजन्म के इतने प्रमाण प्रस्तुत किये कि लोगो को यह मानने का बाध्य होना पड़ा कि दुर्घटना में मरी बहनों ने ही इस बार एक साथ ही पुनर्जन्म लिया है।

रोपेन हेगन (डेनमाक्र) की एक सात वर्षीय लड़की लीना मार्कोनी ने अपने पूर्वजन्म के बारे में बताया कि वह फिलीपीन निवासी किसी होटल मालिक की मारिया एस्पिना नामक पुत्री थी जो 11 वर्ष की उम्र में मरकर रोपेन हेगन में पैदा हुई थी। ईसाई परिवार के लिए यह एक चुनौती देने वाली घटना थी उक्त देश तथा स्थान पर जाँच पड़ताल करने पर वह विवरण सत्य पाया गया।

8 अगस्त 1980 दैनिक पत्र हिन्दुस्तान के रविवार अंक में पुनर्जन्म की एक घटना का उल्लेख इस प्रकार था-’सिम्मी’ नामक एक बालिका का जन्म ग्रा. बस्सी पढाणाँ जि. पटियाला (पंजाब ) के निवासी ईश्वरीदास पाठक के घर 2 फरवरी 1976 को हुआ। एक दिन अपने माता-पिता से बोली कि अपने पति मोहिन्दर सिंह को देखना चाहती हूँ। बालिका ने उक्त व्यक्ति का पता भोजपुर बाजार, सलापड़ मण्डी के निकट बताया। बारम्बार आग्रह करने पर वास्तविकता का पता लगाने के लिए उसके पिता उक्त ग्राम में पहुँचे। पूछताँछ द्वारा मालूम हुआ कि मोहिन्दर सिंह नामक एक ड्राईवर है। उसकी पत्नि कुछ वर्ष हुए मर गई। उसने मोहिन्दर सिंह को देखते ही पहचान लिया तथा बताया कि पूर्व जन्म के उसके पति हैं। बालिका ने अनेकों ऐसे प्रामाणिक घटनाओं का भी उल्लेख किया जिसकी मात्र जानकारी मोहिन्दर सिंह एवं उसकी पत्नि को थी।

हालीवुड के प्रसिद्ध सिनेमा-अभिनेता ग्लेन फोर्ड ने भी अपने पूर्व जन्मों का वृतान्त बताकर वैज्ञानिकों, परा-मनोवैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया है। एक दिन अचानक अंग्रेजी में बात करते हुए उन्होने अपना परिचय उन्नीसवीं सदी के एक संगीत शिक्षक के रुप में दिया। पियानों पर उन्होंने उन्नीसवी सदी की एक प्रचलित धुन भी सुनायी जबकि इस जीवन में उन्हें पियानों का कोई अभ्यास न था। खोजबीन करने पर मालूम हुआ कि उक्त संगीतज्ञ की मृत्यु 1891 में क्षय रोग के कारण हुई थी तथा वह एक प्रख्यात संगीतज्ञ था। ग्लेन फोर्ड द्वारा बताये गये सारे विवरण सही पाये गये।

समय-समय घटनाओं के मिलने वाले प्रमाण इस तथ्य का समर्थन करते है कि पुनर्जन्म एक सच्चाई-एक तथ्य है। साथ ही यह भी सिद्ध हो चुका है कि पूर्व जन्मों के कर्मों के अनुसार ही मनुष्य को भली-बुरी परिस्थितियाँ योग्यता, प्रतिभा जन्म के साथ मिलती है। कोई कारण नहीं है कि इस सत्य से इन्कार किया जाय। जीवन का अन्त इस शरीरत्व के साथ नहीं हो जाता, यह प्रामाणित हो जाने तथा कर्मों के भले-बुरे फल मिलने की पुष्टि हो जाने से सत्कर्मों की महत्ता एवं दुष्कर्मों की हानियाँ स्वयं सिद्ध हो जाती है।


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