पवित्रता, महानता और संयमशीलता

July 1978

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पवित्रता, महानता और संयमशीलता यह तीन तत्व हैं, जो मनुष्य की गरिमा को बनाते और महिमा को बढ़ाते हैं। भौतिक समृद्धि किसकी कितनी है, उसे जाँचने के लिए उसके स्वास्थ्य, शिक्षण, अनुभव, कौशल, पद, धन, साधन आदि अनेक वस्तुओं की जाँच पड़ताल करनी पड़ती है और उसी के आधार पर उसकी सम्पन्नता का अनुमान लगाया जाता है। अन्तरंग की दैवी सम्पत्ति किसके पास कितनी है, इसका पता लगाना हो तो यह देखना होगा कि उसके चरित्र और चिन्तन में कितनी पवित्रता है। व्यक्तित्व में मानवोचित महानता सिद्ध करने वाले सद्गुणों का कितना बाहुल्य है और वह व्यक्ति किस सीमा तक संयमशीलता, सादगी और सज्जनता का अपने व्यवहार में समावेश कर सका है।

समृद्धि में कोई व्यक्ति दूसरों को चमत्कृत कर सकता है, पर किसी की श्रद्धा और सद्भावना प्राप्त कर सकने में समर्थ नहीं हो सकता। सम्पन्न व्यक्ति सुख, सुविधा का लाभ दे सकता है। इन्द्रिय तृप्ति और अहंता का परिपोषण कर सकने वाले प्रदर्शन भी उपलब्ध हो सकते हैं किन्तु तृप्ति, तुष्टि और शान्ति की अनुभूति मात्र वैभव के सहारे हो नहीं सकती।

विभूतिवान वह है जो भले ही अमीरी के साथ जुड़ी हुई विलासिता यह सुविधा से वंचित रहा हो, पर कर्त्तव्य-निष्ठा के सहारे मिलने वाले आत्मा-गौरव और आत्म-सन्तोष का अभाव जिसे कभी नहीं अखरा। सज्जनता संसार की सबसे बड़ी विभूति है। जिसने उसे उपार्जित कर लिया समझना चाहिए यह विश्व की गरिमाशील विभूतियों में से एक है।

अन्न, जल और हवा के सहारे शरीर जीवित रहता है। आत्मा की गरिमा को जीवन्त रखने के लिए उसे पवित्रता, महानता और विनम्रता की परिस्थितियों में रहने का अवसर मिलना चाहिए।

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