बीज बोने पर फल पाने में कुछ समय लग जाता है, इसी प्रकार कर्म का प्रतिफल मिलने में थोड़ी देर लगने से अधीर लोग आस्था खो बैठते हैं और दुष्कर्म के दण्ड से बचे रहने की बात सोचने लगते हैं। विलम्ब के कारण कोई आस्था न खोयें यह चेतावनी देते हुए शास्त्र कहते हैं-
नाधर्मः कारणापेक्षी कर्तारमभिमुंचति। कर्ताखलु यथा कालं ततः समभिपद्यते॥ ( महा0 शान्ति0 अ॰ 298)
अधर्म किसी भी कारण की अपेक्षा से कर्ता को नहीं छोड़ता निश्चय रूप से करने वाला समयानुसार किये कर्म के फल को प्राप्त होता है। 8।
कृतकर्म क्षयोनास्ति कल्पाकोटि शतैरपि। अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्॥ ( शिव॰ कोटी रुद्र0 अ॰ 23)
किये हुए कर्म का सौ करोड़ कल्प तक भी क्षय नहीं होता, किया हुआ शुभ तथा अशुभ कर्म अवश्य ही भोगना पड़ेगा। 39।
अवश्यमेव लभते फलं पापस्य कर्मणः। भर्तः पर्यागते काले कर्ता नास्त्यत्र संशयः॥ (बाल्मी0 युद्ध0 स॰ 111)
पाप कर्म का फल अवश्य ही प्राप्त होता है। हे पते! समय आने पर कर्त्ता फल पाता है इसमें संशय नहीं है। 25।
हे उत्तम पुरुष! जो कोई शुभ या अशुभ कर्म करता है वह पुरुष अवश्य ही उसके फल को प्राप्त होता है इसमें संशय नहीं है।
यदा चरति कल्याणि शुभं वा यदि वा शुभमं। तदेव लभते भद्रे कर्त्ता कर्मजमात्मानः॥ ( बाल्मी0 अयो0 स॰ 63)
अवश्यं लभते कर्ता फलं पापस्य कर्मणः। घोरं पर्थ्यागते काले द्रुमः पुष्पमिवार्तपम्॥ ( बाल्मी0 अरण्य0 स॰ 29)
हे कल्याणी! यदि जो कुछ भी शुभ-अशुभ करता है करने वाला वही अपने किये कर्मों के फल को प्राप्त होता है। 6।
करने वाला अपने पाप कर्मों का फल घोर काल आने पर अवश्य प्राप्त करता है। जैसे मौसम आने पर वृक्ष फूलों को प्राप्त होते हैं। 8।
यथा धेनु सहस्त्रेषु वत्सो विन्दति मातरम्॥ एवं पूर्व कृतं कर्म कर्तारमनुगच्छति। अचोद्यमानानि यथा पुष्पाणि च फलानि च॥ तत्कालं नाति वर्तन्ते तथा कर्म पुराकृतम्॥ ( महा0 अनु0 अ॰ 7)
नाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्प कोटि शतैरपि। अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्मं शुभाशुभम्॥ ( ब्रह्मवैवर्त0 प्रकृति0 अ॰ 37)
जैसे हजारों गौवों में से बछड़ा अपनी माँ को ढूँढ़ लेता है।22। ऐसे ही पूर्व किया हुआ कर्म कर्त्ता को प्राप्त होता है। बिना प्रेरणा के ही जैसे फूल और फल। 23।
अपने समय का उल्लंघन नहीं करते। वैसे ही पूर्व में किया हुआ कर्म समय का उल्लंघन नहीं करता। 24।
सौ करोड़ कल्पों तक भी किया हुआ कर्म बिना भोगे क्षय नहीं होता। किया हुआ शुभ तथा अशुभ कर्म अवश्य ही भोगना पड़ता है। 17।
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