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July 1978

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ज्ञानोदयात् पुराऽऽरब्धं कर्म ज्ञानान्न नश्यति। यदत्वां स्वफलं लक्ष्यमुद्दिश्योत्सृष्टवाणवत्॥

ज्ञान का उदय होने पर भी पूर्वकृत कर्मों के प्रारब्ध भोग तो भोगने ही पड़ते हैं। उनका नाश नहीं होता। धनुष से छूटा हुआ तीर प्रहार करता ही है।

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