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July 1978

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अस्मिन् महामोहमये कटाहे सूर्याग्निना रात्रि दिवेन्धनेन।

मासर्तु दर्वी परिघट्टनेन भूतांनि कालः पचतीति वार्ता॥

महा0 वनपर्व

युधिष्ठिर ने कहा- हे यक्ष, इस संसार में मोह का कड़ाह है। इसी में पड़े सब प्राणी उबल रहे हैं। रात और दिन रूपी ईंधन जल रहा है। ऋतुओं की करछी से काल उन्हें घोट रहा है। प्राणी उसी में पक रहे हैं। इसके अतिरिक्त इस संसार में और क्या समाचार है।

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