गायत्री महामन्त्र

July 1953

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(पं. गौरी शंकर द्विवेदी, चन्दवाड)

सव्या हृतिकाँ स प्रणवाँ गायत्री शिरसा सह।

ये जयन्ति सदा तेषाँ न भयं विद्यते क्वचित्॥

जो मनुष्य सर्वदा व्याहृति, प्रणव, शिर इनके साथ गायत्री का जप करता है। वह कभी भय नहीं पाता।

शत जप्ता तु सा देवी, दिन पाप प्रणाशिनी।

सहस्र जप्ता तु तथ, पात केभ्यः समुद्धरेत॥

सौ बार गायत्री का जप करने से दिन के सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं, और हजार बार जपने से सम्पूर्ण पापों से छूट जाता है।

हृता देवी विशेषेण सर्व काम प्रदायिनी।

सर्व पाप क्षय करी वरदा भक्त वत्सला॥

जो हवन गायत्री मन्त्र से किया जाता है, वही सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करने वाला है, भक्ति प्रिय, वरदानी गायत्री सब पापों को नाश करती है।

गायत्री वेद जननी, गायत्री पाप नाशिनी।

गायत्र्याः परमं नास्ति दिवि चेह च यावनम्॥

गायत्री वेदों की माता है, पापों का नाश करती है, उस लोक एवं परलोक में गायत्री से परे पवित्र करने वाला कोई नहीं।

हस्त त्राण प्रदा देवी, पतताँ नरकार्णवे।

तस्मात्ता नभ्य सेन्नित्यं, ब्राह्मणो नियतः शुचिः॥

जो मनुष्य नर्क रूपी समुद्र में पड़े हैं, उनका हाथ पकड़ कर रक्षा करने वाली गायत्री ही है। इसलिए नियम पूर्वक पवित्रता से ब्राह्मण नित्य गायत्री का अभ्यास करें।

गायत्री जाप निरत, कत्थेपु भोज येत।

तस्मिन्न तिष्ठते पाप दुखि पुष्केर!

जापे नेव तु सं सिद्धयेब्रं नात्र संशयः॥

गायत्री में तत्पर ब्राह्मण को हव्य काव्य से जिमावेडडडड। क्योंकि उस ब्राह्मण में पाप इस भाँति नहीं टिकते। जैसे कमल के पत्ते पर जल।

ब्राह्मण गायत्री जप करने से ही सिद्धि पाता है। इसमें कोई संदेह नहीं।

उपाँशु स्याच्छत गुणः, सहस्रो मानसः स्मृतः।

नोच्चै जाप्यं बुधः कुर्यात् सवित्र्यास्तु विशेषतः॥

उपाँशु जप सौ गुना फल देने वाला है, मानस जप हजार गुना। विशेषकर गायत्री जप ऊँचे स्वर से न करें।

सावित्रि जाप्य निरतः स्वर्ग माप्नोपित मानवः।

गायत्री जाप्य निरतो, मोक्षोपापं च च विदति॥

जो मनुष्य गायत्री के जप से तत्पर है। वह स्वर्ग पाता है और गायत्री जप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

तस्मात् सर्व प्रयत्नेन, स्नातःप्रपत मानसः।

गायत्रीं तु जपेद्भक्ता सब पाप प्रणाशिनीम्॥

इस कारण प्रयत्न पूर्वक स्नान कर पवित्रतापूर्वक स्वस्थ चित्त हो, पाप नाशक एवं वर दात्री, वेद-माता गायत्री का निरंतर जप करें।

दस सहस्र जप्तातु, सर्व कलाष नाशिनी।

सुवर्ण स्तेय कृद्विप्नो, ब्रह्महा गुरु तल्पगः॥

जो दस हजार बार जप करता है, उसके सम्पूर्ण पाप नष्ट हो जाते हैं, सुवर्ण की चोरी करने वाला ब्राह्मण, ब्रह्म हत्या करने वाला, गुरु की शैया पर शयन करने वाला।

सुरापश्च बिशुद्धयेत लक्ष जप्पान्न संशय।

मदिरा पीने वाला। यह सब पाप करने वाले एक लाख गायत्री जप करने से निःसंदेह शुद्ध हो जाते हैं।

वर्ष-13 संपादक - श्रीराम शर्मा, आचार्य अंक-7


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