भयंकर काले सर्प का विष निवारण

July 1953

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(पं. बालाराम शर्मा, भोपाल )

गायत्री उपासना से धीरे-धीरे मनुष्य के सब संकट दूर होते हैं पर कई बार ऐसा भी होता है कि तत्काल भारी संकट से निवृत्ति हो जाती है। यों तो भगवान भक्तों का कल्याण सदैव ही करते हैं पर आपत्ति पड़ने पर वे ग्राह के मुख से गज को छुड़ाने के लिये जिस प्रकार दौड़े आये थे उसी प्रकार गायत्री माता भी आपत्ति के समय रक्षा करती है, इसके अनेक उदाहरण हमने देखे हैं उनमें से एक उदाहरण नीचे लिखा है।

इसी वर्ष कार्तिक कृष्णा की बात है। प्रातः काल मैं उपासना पर बैठा हुआ था, जप पूरा पुरा भी न हो पाया था कि दरवाजे पर बड़ी घबराहट भरी आर्त पुकार सुनाई पड़ी। पुकारने वाला व्यक्ति मेरे पास दौड़ता हुआ सीधा आया और बोला-भैया अनर्थ हो गया, मेरी इकलौती लड़की को काले विष धर साँप ने काट लिया, उसको किसी प्रकार बचाओ, तुम्हारा पूजा पाठ मेरे फिर किस काम आयेगा। चलो, तुरन्त उठो और उसके प्राण बचाओ।

मैंने हाथ के इशारे से कुछ ठहरने को कहा और आधी माला को पूरा करके उठ बैठा। बात चिन्ताजनक थी, इधर के विषधर साँप बड़े भयंकर होते हैं उनके काटने पर कोई विरला ही बच पाता है। बालिका बड़ी मृदुल थी। उसकी इस प्रकार मृत्यु होने की कल्पना से मेरा भी जी टूटने लगा। जल्दी पैर बढ़ाता हुआ मैं उसके साथ चल दिया।

जाकर देखा तो लड़की बिलकुल बेहोश थी, नेत्र लाल हो रहे थे, मुख से विषैला फेन निकल रहा था। ऐसे मृत्यु के मुख में जाते हुए प्राणी को निकालने के लिये क्या उपचार हो सकता था, इस छोटी बस्ती में किसी अच्छे उपचार की तत्काल व्यवस्था होने की भी सुविधा नहीं। फिर अपने बूते की जो बात हो उसे तो करनी ही चाहिये। मेरे ऊपर उपचार का भार डाला गया था। ‘निर्बल के बल राम होते हैं, मेरे पास गायत्री के अतिरिक्त और, कोई दवा दारु नहीं। उसी का प्रयोग बालिका पर आरम्भ कर दिया।

गायत्री मन्त्र से बालिका को मैंने झाड़ना आरम्भ किया। श्री. पुरुषोत्तम राय सारकेट मेरी सहायता कर रहे थे। प्रयोग आरम्भ हुआ साथ ही उसका चमत्कारी लाभ भी दृष्टिगोचर होने लगा। बालिका की बेहोशी दूर होने लगी, मुँह से निकलने वाला झाग बन्द हुआ और आंखें खुलने लगी। हमारा उत्साह बढ़ा। गायत्री से मन्त्रित करके कालीमिर्च उसे खिलाई और अभिमन्त्रित गंगाजल पिलाया। बच्ची के प्राण बच गये। एक दो दिन में ही वह चलने फिरने लगी।

माता की कृपा से क्या नहीं हो सकता? मौत के मुँह में प्रवेश हुए प्राणी पुनः लौट सकते हैं। विषधर सर्प के दांतों का हलाहल भी पानी जैसा हानिरहित बन सकता है।


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