गायत्री की अलौकिक शक्ति

July 1953

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(डॉ. लक्ष्मी नारायण टंडन ‘प्रेमी’ एम.ए. लखनऊ)

मेरे पूज्य पिताजी स्वर्गीय लाल सूरज प्रसाद श्री टण्डन अत्यन्त भक्त तथा संयमी प्राणी थे। वह गायत्री तथा हनुमान जी के परम भक्त थे। चौबीस घंटे वह चलते-फिरते, बैठते यहाँ तक कि बातचीत करते और काम करते भी गायत्री तथा सुन्दर काण्ड का मानसिक जप किया ही करते थे। घर की स्त्रियों का कहना था कि उन्हें हनुमान जी सिद्ध थे।

सन् 1921 की बात है। उस समय मैं लगभग 11 वर्ष का था तथा पांचवीं कक्षा का छात्र था। मुझे टाइफ़ाइड हो गया। एक महीने बाद दिमागी बुखार ने छोड़ा तो कोई असावधानी हो गई होगी। मेरी तबियत फिर पलट गई। लगभग तीन महीने ज्वर से पीड़ित रहना पड़ा। एक बार तो खाट से नीचे भी उतार लिया गया था। एक दिन एक विचित्र घटना घटी। वह मेरी आप बीती घटना आज भी मुझे ज्यों कि त्यों याद है। दूसरे खण्ड में बैठके में मेरी खाट पड़ी थी। एक बार सम्भवतः पूज्य पिताजी के अभाव से मुझे सामने की दीवार पर, दोपहर के समय कद्दे आदम हनुमान जी की मूर्ति के साक्षात् दर्शन हुए। पिता जी तथा बहिन पास ही बैठे थे। एकाएक मैंने पिता जी से कहा ‘चाचा मुझे हनुमान जी के दर्शन हो रहे हैं। ‘सब ने पूछा कहाँ? मैंने उन्हें उसी दिशा में संकेत कर दिया। किन्तु किसी को सिवा दीवार के और कुछ भी दिखाई न दे- वहाँ कुछ हो भी। मैं कहूँ’ सामने तो है बिल्कुल, यह देखो। यह देखो वह हाथ उठाकर आशीर्वाद देते हुए मुझसे कह रहे हैं अब तुम ठीक हो जाओगे इस दिन से। आश्चर्य है क्या आपको नहीं सुनाई दे रहा है। ‘पिताजी ने मुझसे उनसे कुछ पूछने को कहा। महावीर जी ने उत्तर दिया ‘तुम फलाँ दिन फलाँ चीज खाना आरम्भ करना।’ उसी समय घर की कई अन्य स्त्रियाँ वहाँ आ गई और मुझसे प्रश्न पूछवाने लगीं। मैंने प्रश्न पूछे और कहा ‘हनुमान जी कोई उत्तर नहीं दे रहे हैं। यह लो अब मूर्ति गायब हो गई। अब दीवार पर वह नहीं है। पिता जी ने देवता के कहे मुताबिक ही किया और मैं स्वस्थ हो गया।

आज का जगत इस घटना को क्या समझेगा। और वास्तव में यह घटना कैसे हुई और क्या थी यह अब तक मैं भी नहीं समझ पाया। पर अपने कानों, नेत्रों और चेतना पर तो मैं अविश्वास नहीं कर सकता। हो सकता है पिता जी ने जो आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करली हो, उस शक्ति का स्वरूप ही मेरे नेत्रों के सामने खड़ा हो गया हो। हो सकता है यह हैलाकुलेशन हो! यह मैस्मरेजम का खेल नहीं था, एक हनुमान तथा गायत्री भक्त तथा साधना का ज्वलंत जीवित उदाहरण था यह भी हो सकता है।

मन्त्र की अलौकिक शक्ति का एक और उदाहरण देकर मैं लेख को समाप्त करता हूँ। सम्भवतः सन् 1924 की बात है मैं तब आठवीं कक्षा का छात्र था। एक दिन छुट्टी की घण्टी में मेरे हाथ की उँगली में किसी जहरीले जीव ने काट लिया। किसने काटा यह तो मैंने नहीं देखा। पर मेरी उँगली धीरे-धीरे काली पड़ने लगी। स्कूल से छुट्टी लेकर मैं घर भागा। तब मेरे घर में काशी के एक संस्कृत के परम विद्वान पं. पुरुषोत्तम जी व्यास नागर जो एक प्रसिद्ध कर्म काण्ड ब्राह्मण थे, रहते थे। जब में घर पर आया तब वह पैखाने में थे जिस समय तक वह बाहर नहीं निकले मैं दर्द के मारे तड़पता रहा और मेरा हाथ का पंजा काला पड़ गया। हाथ पैर धोकर एक सफेद साफ कपड़ा लेकर सम्भवतः गायत्री मंत्र पढ़कर उन्होंने कपड़े से हाथ को झाड़ा और एक क्षण में दर्द बिल्कुल गायब हो गया और सफेद कपड़ा काला पड़ गया। यह मेरे ऊपर बीती हुई घटना है जो मन्त्र की अलौकिक शक्ति को प्रकट करती है।


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