गायत्री की महिमा

July 1953

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(श्री बद्रीप्रसाद बहूलाल मालवीय, इटारसी)

मेरे दो बच्चे थे। एक बच्चा व एक बच्ची। दोनों 3-4 साल के हो गये। नौकरी रेलवे में करता हूँ। समय प्रसन्नता से कट रहा था। परन्तु माताजी की इच्छा बलवान थी। पूर्व जन्म का कोई कारण आने के कारण दोनों बच्चे न रहे। इस कारण मैं बहुत दुःखी रहता था। इसी बीच में मेरे एक काकाजी हैं, उनका उस समय एक मुकदमा चल रहा था। उसका विचार भी मेरे दिमाग में चक्कर चल रहा था। इन दोनों कारणों से मैंने सोच लिया था कि एक दिन जीवन का अन्त ही कर दूँ तो ठीक है। इसी विचार के कारण मैं दिनोंदिन दुबला होता जा रहा था। खाना भी नहीं खाया जाता था। सोचता था क्या करूं। रेल में कट जाऊँ या कहीं जाकर मर जाऊँ।

इसी बीच में वेदमाता जी की असीम कृपा से मुझे मान्यवर भगवती दीन जी से मुकाबला हो गया। उन्होंने मुझ से हाल पूछा कि तुम कमजोर क्यों दीखते हो। मैंने उन्हें अपनी सब रामकहानी सुना दी। मुझे पण्डित जी पहले से भी पहचानते थे। परन्तु जब प्रभु को कष्ट मिटाना होता है तभी उपाय मिलाता है। पं. जी ने मुझे काफी हिम्मत दी तथा माताजी का पूजन, जाप करने की विधि बतलाई कि यदि तुम माताजी की शरण में पड़ जाओगे तो बहुत जल्दी शान्ति मिलेगी। पं. जी की बातों पर मुझे पूर्ण विश्वास हो गया तथा उनके कहे अनुसार माताजी का पूजन, जाप व चालीसा का पाठ करने लगा तथा मेरे काकाजी को भी जिन पर मुकदमा चल रहा था माता की सेवा में लगा दिया। इतवार को माताजी का उपवास करना भी शुरू किया।

जब मैं काकाजी के साथ पेशी पर अदालत में जाता था तब माताजी के मन्त्रों का जाप अदालत के अन्दर किया करता था तथा काकाजी भी माताजी के जाप में अदालत में मग्न रहा करते थे। माता जी कृपा से कुछ माह के बाद माताजी की सेवा के कारण मेरे काकाजी पर जो मुकदमा चल रहा था उसमें पूर्ण रीति से हमारी जीत हो गई। इस कारण एक चिन्ता मेरे मन की माताजी की कृपा से दूर हुई।

दूसरी बात-अब मेरे यहाँ जो दूसरी एक कन्या हुई थी वह भी बीमार ही रहा करती थी। बहुत इलाज किया ठीक नहीं रहती थी। परन्तु जब से माताजी की सेवा में लगे हैं लड़की पूर्णरूप से ठीक रहती है। कोई तरह की बीमारी उसे नहीं है तथा मेरा अन्तरात्मा पूर्ण रूप से शान्त रहता है।


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