पिता जी की प्राण रक्षा

July 1953

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(श्री अम्वादास पंडरो शा. सौरब बुरहानपुर)

इस वर्ष चालीस दिन के सवालक्ष के अनुष्ठान के पश्चात् मेरे पिता जी बवासीर (मूल व्याधि) से पीड़ित थे।

नाँदुरे से भाई का पत्र आया, “पिता जी के बवासीर (मूल व्याधि) ने उग्र स्वरूप धारण किया है। वे बेचैन हैं। खाने पीने में अरुचि तो है ही, साथ ही साथ खाने पीने की भी शक्ति नहीं, चल फिर नहीं सकते, निश्चल पड़े हैं। अतीव दुःख अनुभव कर रहे हैं। शहर के प्रसिद्ध डॉ. कुलकर्णी को बुलाया गया-किन्तु उन्होंने कहा कि “यह केस मेरे शक्ति के बाहर है, अतः इन्हें अकोला के प्रसिद्ध सिविल सर्जन के पास जाकर बवासीर का आपरेशन कराओ, अन्यथा रोग दुरुस्त नहीं हो सकेगा।” अतः आप यह पत्र तार के समान समझ कर निकल जाओ।

यह दुःखद पत्र पढ़ कर बड़े भाई, भाभी, तथा मेरे प्राण में प्राण नहीं रहे सबके होश उड़ गये। बड़े भाई तत्काल 5 दिन की छुट्टी लेकर रविवार को नाँदुरा रवाना हो गये। मेरा पूर्ण चित्त पिता जी के जीवन की ओर लगा हुआ था।

रविवार को तथा सोमवार को माता गायत्री से इस विषय में वार्तालाप किया व सोमवार शाम को शैली पर जल एवं तुलसी पत्र लेकर संकल्प रूप से अनुष्ठान का पुण्य फल पिता जी को गायत्री मन्त्र युक्त अर्पण किया व साथ ही साथ यह भावना की कि- “यह मेरी अनुष्ठान की पुण्य शक्ति गायत्री मन्त्र के आधार पर वायु मण्डल को पारकर शीघ्रातिशीघ्र पिता जी की ओर जा रही है और पिता जी को उस महान व्याधि से मुक्त कर रही है। अतः पिता जी स्वस्थ हो गये हैं, खाने पीने लगे, चलने फिरने भी लगे हैं एवं घर में सब की मुद्रा प्रसन्न है।

साथ ही साथ मेरा अन्तःकरण भी सचमुच प्रसन्न हो रहा था। लगातार गायत्री माता से पिता जी के स्वस्थ होने तथा जीवन प्राप्त करने की प्रार्थना करता था।

गुरुवार को जब भाई बुरहानपुर लौट आये तो उन्होंने शुभ सन्देश सुनाते हुए कहा कि “रविवार की रात्रि से सोमवार की शाम तक पिता जी की हालत बहुत सोचनीय थी, जल के अभाव से उनका गला घर्र घर्र बज रहा था। हाथ पैर निश्चित थे। अस्थि पंजर थे उनके बचने का कोई भरोसा नहीं था, उन्हें चारपाई (खाट) से नीचे उतारा गया। घर में सब शोक कर शोर मचाने लगे।

लेकिन शाम को क्या हुआ कि उनकी हालत में विद्युन्मय फरक मालूम हुआ, हाथ पैर हिलने लगे, जल एवं दूध पिया, गले का घर्र घर्र बजना बन्द हुआ, दूसरे दिन खाने पीने लगे। बवासीर से मुक्त हो गये और आज गुरुवार को खेती में भी काम करने चले गये।

यह सब माता की कृपा एवं मेरे गुरुदेव के चरणों में स्थित अपनी अटल श्रद्धा और विश्वास का ही फल है।

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पुष्कलं धन समृद्धिः सहयोगश्च सर्वतः। स्वास्थ्यं वा त्रय एते स्युस्तस्माल्लामश्च लौकिकाः।


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