गायत्री साधना के चमत्कार

July 1953

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(श्री कृपाराम जी पाण्डेय, सीरबड़)

(1) मेरे अध्ययन काल में पं. वामदेव जी मिश्र ने यह कथा उपदेश रूप में हमको सुनाई थी। मथुरा दत्त नाम के एक ब्रह्मचारी काशी में विद्याध्ययन करते थे, उनका भोग एक समय का दो सेर का होता था, कोई उन्हें खिलाने को तैयार नहीं होता था, एक तेली उन्हें खाना देने के लिए तैयार हुआ उस समय आटे की मशीन नहीं चलती थी उसकी स्त्री स्वयं पीसकर देती थी, कुछ दिनों बाद वह ऊब गई और अनुचित शब्दों द्वारा एक दिन फटकारने लगी और कहने लगी कि इस निगोड़े को खिलाते खिलाते मेरे चूतड़ों में चट्टे पड़ गये अब मैं आटा पीसकर इसे नहीं दूँगी, इससे अपमानित हो ब्रह्मचारी जी चल दिये, परन्तु तेली ने अपनी स्त्री को बहुत कटुवचन कहते हुये, ब्रह्मचारी जी से प्रार्थना करने लगा-महाराज! आप प्रतिदिन की तरह मेरे यहाँ से भोजन सामग्री ले जाया करें। किन्तु वे नहीं लौटे किसी महात्मा के पास जाकर आपने इस व्यथा को व्यक्त किया। महात्मा ने उन्हें गायत्री मन्त्र जप का विधानतः निर्देश दिया और वे उसी से दक्षिण, रामनगर के सामने निरन्तर रहकर जप प्रारम्भ कर दिया। जैसे दिन बीतने लगे लोग उनके पास भोजन के लिये नाना प्रकार की वस्तुएँ ले जाने लगे लेकिन वे सबको मना कर देते, अन्त में जप पूर्ण होने पर, श्री काशी नरेश जी स्वयं उनके पास आये और कहने लगे कि महाराज! हवनादि में जो खर्च लगे मैं दूँगा आप विधिवत इसको पूर्ण करें। किन्तु उन्हें कहा हमारा सम्पूर्ण कार्य जप से ही पूर्ण होगा, मुझे किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं है, इस तरह जप पूर्ण कर यहाँ से वे प्रयाग चले गये और वहाँ प्रयाग के दूसरे किनारे पर झूँसी के पास कुटिया बनाकर रहने लगे।

कुछ काल के बाद यह बहुत प्रसिद्ध हो गये, और अनेक प्रकार के चमत्कारों द्वारा लोगों का कार्य भी समय समय पर कर दिया करते थे। जब गोरखपुर के पय आहारी (पवहारी ) बाबा ने इनकी इस प्रशंसा को सुना तो एक दिन अपने दलबल के साथ लगभग 10 बजे रात्रि को आ पहुँचे और परीक्षा लेने की दृष्टि से इनके यहाँ कहलवा दिया कि मैं आपका आज अतिथि हूँ और हमारे यहाँ आज एकादशी होने के कारण हाथी, घोड़े, ऊँट तक फलाहार ही करते हैं, आप इसका उचित प्रबन्ध करदें। ब्रह्मचारी जी के पास उस समय एक व्यक्ति बैठा था जो एक पाव सिंघाड़े का हलुआ और आधा सेर दूध लेकर आया था। ब्रह्मचारी जी ने कहा कि भाई इतना कष्ट करो कि दो नाँद कोरी लादो वहाँ से गाँव एक मील था वह आदमी जाकर दो नाँद ले आया। ब्रह्मचारी जी ने उससे कहा कि एक नाँद में दूध और एक में हलुआ रखकर कपड़े से ढ़क दो और जाकर बाबा जी से कह दो कि अपने आदमियों को भेजकर सामान यहाँ से मँगवा लें और तुम घर चले जाओ, वह बाबाजी को सन्देशा देकर घर चला गया और बाबाजी के सभी आदमी, घोड़े ऊँट आदि उस नाँद के सामान से ऊब गये और वह समाप्त नहीं हुआ। प्रातःकाल बाबा जी आकर चरणों पर गिर पड़े और कहने लगे कि मैंने बड़ा अपराध किया जो इस तरह आपकी परीक्षा ली आपका बहुत चमत्कार है। ब्रह्मचारी ने कहा हमारे में कोई चमत्कार नहीं है, यह सब गायत्री माता का चमत्कार है। कुछ दिनों के बाद वे अपने यहाँ आने वालों से उन्होंने कहा कि अब मैं अमुक दिन यहाँ से जाने वाला हूँ। और उस दिन यमुनाजी में एक प्रकाश दिखलाई दिया और ब्रह्मचारी जी उठकर उस प्रकाश के पास गये और उसी के साथ लुप्त हो गये।

(2) हमारे प्रपितामह प्रयाग दत्त पांडेय गायत्री के उपासक थे और माता के बल से ही वे कई बार चिकित्सा में आश्चर्यजनक कार्य करते थे, एक बार एक जगह जा रहे थे रास्ते में कुछ लोगों ने कहा कि वैद्यराज जी हमारे यहाँ एक रोगी है उसे देखते जाइये। उस रोगी को देखा तो उसकी सन्निपात से अन्तिमावस्था जान पड़ती थी और 8 वैद्य उपस्थित थे उन लोगों ने जवाब दे दिया था और दो घण्टे का ही मेहमान बता रहे थे, उस रोगी को सबके सामने ही कण्डे की राख उठाकर तीन पुड़िया बनाकर दे दीं और कहा कि अदरक के स्वरस मधु से आज दे दो और कल पथ्य दे देना कहकर वहाँ से चले गये, शेष वैद्यों ने पागल कहकर मजाक किये, किन्तु दूसरे दिन वह स्वस्थ हो गया और उसे पथ्य दिया गया। इस तरह अनेक घटनाएँ उनके जीवन की हैं, एक कुआँ जो हमारे यहाँ के जमींदार द्वारा बनवाया जाता था कुछ बनने पर गिर जाता था। इस पर बाबू नवलकिशोर सिंह ने कहा कि यदि मेरे बनवाये एक कुआँ भी नहीं बन रहा है तो मैं अनशन कर प्राण दे दूँगा, लोगों ने इनसे कहा ये उनके पास गये और बाबू साहब से कहने लगे आप अन्न ग्रहण करें मैं कल कुआँ बनवा दूंगा और प्रातःकाल वे कुएँ में स्वयं बैठकर गायत्री का जप करने लगे, कुआँ बनने लगा 10 हाथ बँधने पर दीवार गिरने लगी राजगीर निकल गये और उनसे भी कहने लगे कि आप भी शीघ्र निकल आवें। नहीं तो कुआँ बैठ रहा है, उन्होंने इशारे से मना कर दिया और माला समाप्त कर टेढ़ी दीवार का स्पर्श हाथों से कर राजगीरों से कहने लगे कि आकर जुड़ाई प्रारम्भ करो कोई गड़बड़ी अब नहीं होगी। वे सब भीतर जाकर चिनाई करने लगे सायंकाल तक कुआँ जुड़ गया किन्तु कुछ देर के लिए पत्थर घट गया तो उन्होंने कहा आज जैसे हो पूरा करलें नहीं फिर मेरे निकलने के बाद इसकी जुड़ाई फिर नहीं हो सकेगी, तो ईंटों द्वारा शेष को पूर्ण किया गया। वह कुआँ आज भी वैसे ही तैयार है। लगभग 100 वर्ष की बात है।

(3) हमारे पितामह बाल्यावस्था से ही गायत्री जप में लग रहे थे जिनका प्रभाव यह था कि रोगी को या उसके दुख को देखकर ही रोगी के अच्छा होने और मरने का बिलकुल ठीक ठीक समय (तिथि, वार और घण्टा तक) बता देते थे, असाध्य रोगियों की न चिकित्सा ही करते थे न देखने ही जाते थे। जीवन के अन्तिम 15 वर्ष तो अहर्निशि गायत्री जप हवन व वेद पाठ में ही लगा दिये थे। मृत्यु से पहले कुछ लोगों से कहते थे कि मैं जितना जप करना चाहता था उसमें कमी रह गई अतः मुझे पुनः जन्म ग्रहण करना पड़ेगा, अब अमुक समय मेरी मृत्यु हो जायगी और उसी समय वे दिवंगत हुए।


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