उपासना के कुछ प्रत्यक्ष परिणाम

July 1953

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( श्री पं. हरिशंकर पाण्डेय शास्त्री, इटारसी )

गायत्री उपासना की शिक्षा मुझे 11 वर्ष की आयु में उस समय मिली जब मेरा यज्ञोपवीत हुआ था। जिस दिन से यह महामन्त्र मुझे मिला उस दिन से लेकर आज पर्यंत मैं पूर्ण श्रद्धा और लग्न के साथ नियमित रूप से इस साधन को करता हुआ चला आ रहा हूँ।

गायत्री के अनेक लाभ बताये जाते हैं उनमें से कुछ को मैंने अपने जीवन में प्रत्यक्ष देख लिया है। पहला लाभ जिसका मैंने भली भाँति अनुभव किया है यह कि जिससे साधक की बुद्धि निर्मल एवं कुशाग्र बनती हैं। मैं पढ़ने में सदैव तेज रहा, स्मरण शक्ति और धारणाशक्ति सदैव तेज रही, 25 वर्ष की आयु में मेरी शादी हुई इससे पूर्ण ही आयुर्वेद की परीक्षाएँ उत्तीर्ण कर चुका था।

घर की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी, मैं एक अच्छा दवाखाना खोलना चाहता था। घर के लोगों से चर्चा की तो उन्होंने दवाखाना खोलने लायक पैसा जुटाने में असमर्थता प्रकट की। दूसरी कठिनाई यह थी कि इटारसी जैसे नगर में जहाँ बीसों डॉक्टर, वैद्य और अस्पताल मौजूद वहाँ नये एवं छोटे दवा-खाने का चलाना कठिन दिखाई पड़ता था। सब लोग मुझे नौकरी देने की सलाह दे रहे थे। इच्छित व्यवसाय करने का मार्ग रुका हुआ दिखाई पड़ता था। निराशा और चिन्ता से मेरा मन भारी हो रहा था।

एक दिन अस्थिर चित्त से जब मैं पूजा में बैठा हुआ माता से अपनी मनो व्यथा कह रहा था तो अचानक ऐसी अन्तः प्रेरणा हुई कि “मैं अपना कार्य आरम्भ करूं मुझे दैवी सहायता मिलेगी।” मुझे उत्साह प्राप्त हुआ और एक छोटा सा किराये का मकान लेकर औषधालय आरम्भ कर दिया।

कार्य में आशाजनक सफलता मिली, जिस रोगी पर हाथ डाला वह अच्छा ही हुआ। अनेकों असाध्य और कष्ट साध्य रोगी अच्छे करने का श्रेय अपने को प्राप्त हुआ। साथ ही धन और यश की भी वृद्धि हुई। इन थोड़े से ही दिनों में दस हजार से अधिक रुपया लगा कर अपना निजी मकान बनाया है। बगीचा, औषधालय मरीजों के वार्ड आदि बनाने के लिये 30 एकड़ जमीन खरीदी है जिस पर शीघ्र ही एक विशाल भवन बनने की तैयारी हो रही है। हजारों रोगियों की सेवा इस छोटे दवाखाने से आज भी हो रही है फिर नयी व्यवस्था के अनुसार तो और भी विशाल पैमाने पर सेवा कार्य होना संभव है।

यह सब गायत्री उपासना का ही चमत्कार है। अन्यथा कुछ ही समय पहले जब औषधालय खोलने लायक पूँजी, सहायता एवं सुविधा की कोई व्यवस्था न थी कौन यह आशा करता था कि साधनों के अभाव में भी इस प्रकार की उन्नति सम्भव है।

आत्मिक दृष्टि से गायत्री उपासना द्वारा जो लाभ हुए हैं उनका उल्लेख न करना ही शिष्टाचार की दृष्टि से उचित है, माता मेरी अन्तःभूमि को जिस प्रकार निर्मल करती जा रही है उस प्रगति को देखते हुए यह आशा करना भी अनुचित नहीं कि अपना मनुष्य जन्म निष्फल जायगा।


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