धर्म का अभ्युत्थान करो (Kavita)

July 1953

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धर्म का अभ्युत्थान करो।

मानवता को पशुता के बन्धन से मुक्त करो, फिर से जगती को जग जीवन के उपयुक्त करो,

संस्कृति के खण्डहर का फिर से नव निर्माण करो, धर्म का अभ्युत्थान करो!!

सेवा, दया, त्याग, ममता, संयम, समता, संतोष, से मिल बनता धर्म मानव का सञ्चित कोष,

इसी कोष की वृद्धि हेतु तुम भी कुछ दान करो, धर्म का अभ्युत्थान करो!!

अब पुस्तक से खींच धर्म को जीवन में लाओ, प्रभु का रूप समझ मानव को पूजो अपनाओ,,

द्रवीभूत अपनी आस्था से तुम पाषाण करो, धर्म का अभ्युत्थान करो!!


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