गायत्री उपासक सोम शर्मा

July 1953

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(स्व. श्री पं. शिवदत्त शर्मा)

गायत्री जप के विषय में अनेक आख्यान प्रचलित हैं, उनमें से सोम शर्मा नाम के ब्राह्मण का एक रोचक आख्यान ‘श्री गायत्र्यर्थ प्रकाश’ से यहाँ उद्धृत करते हैं।

सोम शर्मा नाम का एक ब्राह्मण गायत्री का परम भक्त हो गया है। उसने अपने जीवन में गायत्री के (निष्काम) कई पुरश्चरण किये थे। उसकी स्त्री बड़ी साध्वी-सुशील-सुरुपा और पतिपरायण और चार पुत्र थे। उनमें तीन पुत्र तो बड़े विद्वान, बुद्धिमान, धर्मात्मा थे। परन्तु दैवयोग से सबसे छोटा चौथा पुत्र चोर निकला। पिता-माता और भाइयों ने बहुत कुछ समझाया, पर उसने किसी का कहना नहीं माना। अन्त में सोम शर्मा की मृत्यु के समय जब सारा कुटुम्ब एकत्र था, उसने अपने छोटे पुत्र से कहा कि इस समय केवल तुम्हारी चिन्ता से मैं दुःखी हूँ। यदि तुम मेरी एक बात मान लोगे, तो मेरी मृत्यु बहुत सुख से होगी।

समय का विचार करके छोटे पुत्र ने पिता के कान में जाकर कहा कि चोरी छोड़ने के सिवाय और कुछ थोड़ी देर का काम बताओगे मैं मान लूँगा।

पिता ने कहा कि मैं चोरी छोड़ने को नहीं कहूँगा। तुम्हारी इच्छा हो सो करते रहना, परन्तु ठीक सूर्योदय के समय स्नान करके एक माला गायत्री की जप लिया करना।

लड़के ने सोचा-एक माला जपने के लिए अधिक से अधिक दस मिनट लगेंगे। उसने स्वीकार कर लिया और उसके पिता की सुख से मृत्यु हो गई।

छोटा लड़का भी यथा समय अपने काम में (चोरी करने में) लग गया। परन्तु जहाँ कही जैसे ही सूर्योदय हो कि तत्काल स्नान करके माला जपने का नियम दृढ़ता से पालन करता रहा।

एक बार उसके मन में स्फुरण हुई नित्य छोटी छोटी चोरी करने से एक बड़ी चोरी करना अच्छा है। उससे पकड़े जाने पर तो प्राण दंड होगा, परन्तु दैवयोग से बच गये, तो सारे जीवन की चिन्ता दूर हो जायगी। यह सोचकर उसने अपनी कला से राजमहल में प्रवेश कर रानियों के जेवर का डिब्बा चोरी करके अपने घर का रास्ता लिया। जैसे ही वह शहर के बाहर हुआ कि सूर्योदय का समय हो गया। वहीं पर एक जलाशय था। उसने कपड़े उतार उनमें जेवर का डिब्बा लपेटकर तालाब के किनारे रख दिया और आप स्नान करके गायत्री का जप करने लगा।

उतने ही में चोर को पकड़ने के लिए फौज के सिपाही चारों तरफ दौड़ पड़े। कुछ लोग इस तरफ भी आ पहुँचे तो क्या देखते हैं कि एक दिव्य तेज युक्त सोलह वर्ष की लड़की उन कपड़ों के पास बैठी है और ब्राह्मण स्नान करके जप कर रहा है। यह देखकर उनके अफसर ने कहा-अरे यह ब्राह्मण तो निर्भय होकर जप कर रहा है और यह बाई उसके कपड़ों की रखवाली कर रही है। दूसरी तरफ चलो, चोर कहीं निकल न जाय। ऐसा कहकर वे लोग दूसरी तरफ चल दिये। उधर ब्राह्मण माला पूरी करके अपने कपड़ों के पास उस लड़की को बैठी देखकर कहने लगा-बाई! तुम कौन हो और मेरे कपड़ों के पास क्यों बैठी हो?

दूसरी तरफ मुँह फेरे हुए ही उस देवी ने उत्तर दिया कि तेरे पिता सोम शर्मा मेरा परम भक्त था। तू उसका पुत्र है, आज तेरे प्राणों पर संकट देख मुझे आना पड़ा।

ब्राह्मण समझ गया कि भगवत् गायत्री देवी है। उसने साष्टाँग दण्डवत प्रणाम करके कहा-माँ इतनी दया मुझ पर है फिर मुझे दर्शन क्यों नहीं होते।

भगवती ने कहा-यह उस तेरे पिता के पुण्य का प्रताप था कि मुझे आज तेरे प्राणों की रक्षा के लिए यह सब करना पड़ा है और तू ब्राह्मण होकर नीच कर्म करता है। ऐसे लोगों को मेरा दर्शन होने लगे, तो वेद-शास्त्रों की मर्यादा और मेरा महत्व ही क्या रहेगा।

ब्राह्मण ने पुनः-पुनः साष्टाँग प्रणाम किया और क्षमा याचना की तो भगवती ने कहा-मैं तुझसे प्रसन्न हूँ कि तूने एक माला जप करने को पिता की आज्ञा का पालन किया है। अब इस कर्म को छोड़कर तू जप ही को अपने जीवन का लक्ष्य बना ले, तो सर्वथा सुखी होगा और उचित समय पर दर्शन होंगे। इतना कहकर भगवती अन्तर्ध्यान हो गई।

इस आख्यायिका से हमें यह उपदेश मिलता है कि (1) नित्य बिना नागा (2) समय पर (3) श्रद्धा और सत्कार पूर्वक (4) दीर्घकाल तक (संसारी धन्धों में लगे रहकर भी ) जप करते रहने से महान भय से रक्षा होती है और जीवन सफल हो जाता है।


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