(श्री पृथ्वीराज तिवारी, गोहाटी)
यों तो मैंने विक्रमी संवत् 2006 की गोपाष्टमी से गायत्री माता की पूजा स्वरूप सन्ध्या वन्दन आदि आरम्भ कर दी थी। सन्ध्या काल मालाएं अपनी श्रद्धा भक्ति के साथ दिन में 2 बार प्रातः सायं करता था। पीछे त्रिकाल सन्ध्या भी करने लग गया। परन्तु इन साधनाओं के करते हुए भी मुझको अपनी साधना तथा उपासना पर इतना भरोसा नहीं था। मेरे अन्तःकरण में शंकाएं बनी ही रहती थीं कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही है या त्रुटिपूर्ण। साधना काल के अनुभवों का अर्थ भी नहीं समझ पाता था। बड़ी दुविधा में पड़ा हुआ था। में बहुत दिनों से योग्य महात्मा, पथप्रदर्शक की तलाश में था।
शंकराचार्य आदि महात्माओं के उपदेश पत्रों में गुरु के लिये बहुत ही जोर दिया गया है। उनके पत्रों से मुझको ऐसा अनुभव हुआ कि बिना पोश गुरु के पथ प्रदर्शन के मेरी साधना का श्रम व्यर्थ ही जायेगा। ऐसी बातों से मेरा चित्त बड़ा ही उदास तथा चिन्ताशील रहा करता था। अनुभवी महात्मा और ऋषि केवल वेदमाता को ही अपना आधार मानने वाला गुरु कैसे प्राप्त हो? बड़ी चिन्ता का विषय बन गया।
विक्रमी सम्वत् 2008 की रामनवमी की रात्रि को 2.211 बजे स्वप्नावस्था में एक ऐसी प्रेरणा हुई। उस प्रेरणा के आधार पर गायत्री सम्बन्धी अमूल्य साहित्य तथा सद्गुरु की प्राप्ति सहज हो गई।
जब से गुरुदेव की शरण प्राप्त हुई है, मुझको गायत्री उपासना में बहुत ही सन्तोषजनक प्रगति करने का आनन्द प्राप्त हो रहा है। दिन पर दिन स्वभाव और प्रकृति में भी सन्तोषजनक परिवर्तन हो रहा है। आत्मबल की आशाजनक वृद्धि हुई है। हृदय में बड़ा ही सन्तोष हो रहा है। कुछ यौगिक षट्चक्रों का भी अप्रत्यक्ष रूप में अनुभव होने लगा है, कुछ ही दिनों में वेदमाता के प्रति इतनी श्रद्धा और सन्तोषजनक प्रगति का होना भगवती की कृपा का प्रत्यक्ष प्रमाण मालूम देता है।
पिछले दिनों में मुझको बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन कठिनाइयों से बचने के लिये मेरे सामने किसी भी प्रकार के साधन नहीं थे। चारों तरफ निराशा के बादल छाए हुए थे। मैं एकान्त में बैठकर बहुत ही हीन शब्दों में माता से अपने संकट को दूर करने की प्रार्थना किया करता था। मुझको ऐसा स्वप्न में भी विश्वास नहीं था कि माता हमारे कष्ट को दूर करने के लिए शीघ्र ही कोई मार्ग निकाल देगी। अन्त में माता ने हमारे हृदय की बात को जानकर सच्ची पुकार को समझ-कर एक बड़ी भारी उलझन भरी समस्या को हल कर दिया। अब हम अपनी साँसारिक उन्नति भी करने में सफल होंगे ऐसी आशा हो गई है।
उपासना काल में बहुत से अनुभव हुए हैं। इन अनुभवों का जिक्र गुरु आज्ञा के बिना करना निषेध है। अतः इस विषय में विशेष बातें नहीं लिखी जा सकतीं।
बहुत से साँसारिक लाभों के अतिरिक्त एक पुत्र रत्न भी हुआ है जिसके लिए पण्डितों के कथनानुसार ऐसे बालक का होना भगवती की कृपा का विशेष रूप से होना ही है।