(श्री भारत राम वानप्रस्थी, चौरसिया)
गायत्री का सर्व विदित लाभ यह है कि उससे जन्म जन्मान्तरों के सुसंस्कार मिलते हैं और कुपात्रता दूर होती है। सुसंस्कारी और सत्पात्र होना जीवन का सबसे बड़ा लाभ है। जिसे यह लाभ प्राप्त है, उसे किसी बात का अभाव नहीं रहता।
जो लोग जीवन की छोटी मोटी असुविधाओं का निवारण करने के लिए सकाम उपासना करते हैं वे इस प्रचण्ड ब्राह्मी शक्ति की महिमा को नहीं जानते। चक्रवर्ती राजा से कोई यह माँगे कि मुझे एक रोटी दिला दीजिए तो उस याचक को मूर्ख ही कहेंगे। रोटी तो थोड़े परिश्रम से कमाई जा सकती है या अन्य तरीकों से भी उसे प्राप्त किया जा सकता है। राजा से माँगनी हो तो ऐसी मूल्यवान वस्तु माँगनी चाहिए जो अपने प्रयत्न से या साधारण साधनों से प्राप्त न हो सकती हो। साँसारिक वस्तुएं मनुष्य स्वयं उपार्जित कर सकता है, दूसरों से ले सकता है या उनके अभाव में भी काम चला सकता है, परन्तु एक ऐसी वस्तु है जो कठिनाई से प्राप्त होती है वह वस्तु है सुसंस्कार, सत्पात्रता और सात्विक दृष्टि, यही गायत्री माता से माँगने योग्य है। जिसने यह प्राप्त किया उसके लिए सर्वत्र आनन्द ही आनन्द है।
मैंने साधना मार्ग में विनम्र पदार्पण किया है। उत्तराखंड के तपस्वी महात्माओं की कृपा का किंचित प्रसाद प्राप्त करने में भी समर्थ हुआ हूँ। ऐसा प्रत्यक्ष अनुभव करने का सौभाग्य मुझे दिया गया है-एक अत्यन्त महान प्रचण्ड ज्योति अपना हाथ पर मेरे शरीर को रखकर धीर धीरे उसमें प्रवेश करती हुई विलुप्त हो गईं। इसी प्रकार हृदय चक्र में सूर्य शक्ति का जो अलौकिक आनन्द प्राप्त होता है उसका रस कोई भुक्त भोगी ही जानते हैं। माता जिस पर वस्तुतः प्रसन्न होती है उसे माया के झंझटों से छुड़ाकर त्याग और वैराग्य की ओर ले चलती है तथा सत्पात्रता एवं सुसंस्कार प्रदान करती है। परन्तु जिनसे वे पीछा छुड़ाना चाहती हैं उसे माया का खिलौना देकर बहला फुसला देती हैं। वह अज्ञानी उस खिलौने से लिपटा रहता है और माता की गोदी में चढ़कर उसका अमृत तुल्य पय पान करने से वंचित रह जाता है।
मैं माता के चरणों में आत्मार्पण करके जो शाँति पाता हूँ वह सारी पृथ्वी का धन ऐश्वर्य मिलने पर भी सम्भव नहीं है। माता से यही प्रार्थना रहती है कि कही तू साँसारिक खिलौनों में मुझे न बहका देना, मुझे कोई वस्तु नहीं चाहिये केवल तेरी कृपा विशुद्ध कृपा-चाहिये, जिससे आत्मा का सच्चा स्वार्थ साधन हो सके।