युग ऋषि का साथ निभाने
युग ऋषि का साथ निभाने, दृढ़ता जिसने दिखलाई है।
ऐसे भाई के लिए बहन यह, रक्षाबन्धन लाई है॥
जो नहीं स्वार्थ से बंधा हुआ, परमार्थ जिसे प्रिय लगता है।
जो युग ऋषि के अनुशासन से, चिन्तन चरित्र निज गढ़ता है॥
साहस एकाकी बढ़ने का, कौशल सबको संग लेने का।
उत्साह बढ़ाएँ जो प्रति पल, युग सृजन हेतु खप जाने का॥
युग सृजन पताका को थामे, जिसकी दृढ़ सबल कलाई है॥
जो ज्ञान क्रान्ति में लगा हुआ, माँ गायत्री का पुत्र बना।
जो नैतिक क्रान्ति सिखाता है, युग सृजन यज्ञ का दूत बना॥
युग प्रज्ञा का प्रसाद ले जो जन- मन की भ्रान्ति मिटाता है।
लेकर सविता का तेज साथ, सामाजिक क्रान्ति जगाता है॥
उसके हों पूर्ण मनोरथ शुभ, यह भाव गूँथकर लाई है॥
गुरुवर का प्रिय प्रज्ञा प्रसाद जो, बाँटा करता जन- जन को।
माँ की शुभ श्रद्धा धारा से, सींचा करता है जन- मन को॥
इस अनगढ़ जग के दल- दल में जो पंकज खिल जाता है।
सद्भावों की पावन सुगन्ध इस दुनियाँ में फैलाता है॥
इस सरसिज जैसे जीवन को बहना दे रही बधाई॥