राखी के हर धागे में (अ)
राखी के हर धागे में है अनुपम प्रेम समाया।
जन- जन में यह भाव जगाने, रक्षा बन्धन आया॥
गुरुसत्ता के हर सपूत की, मैं हूँ प्यारी बहना।
हर भाई प्यारा है मुझको, वही हमारा गहना॥
गुरुसत्ता की परम कृपा से, तुम सबको है पाया।
जन- जन में यह भाव जगाने, रक्षा बन्धन आया॥
भरे हृदय स्नेहिल भावों से, बाँध रही हूँ राखी।
मेरे सदा रहोगे तुम सब, गुरुसत्ता है साखी॥
तुमको मिलती रहे निरन्तर, गुरु की शीतल छाया।
जन- जन में यह भाव जगाने, रक्षा बन्धन आया॥
गुरुसत्ता के प्रति श्रद्धा की, खिली रहे फुलवारी।
सद्गुरु कृपा रहे तुम सब पर, शुभकामना हमारी॥
मंगल गान हृदय ने मेरे, सदा यही है गाया।
जन- जन में यह भाव जगाने, रक्षा बन्धन आया॥
जन्म शताब्दी महापर्व मिलकर है सफल बनाना।
धन साधन सामर्थ्य सहित, बढ़- चढ़कर आगे आना॥
जीवन भर हम पर सद्गुरु ने प्यार असीम लुटाया।
जन- जन में यह भाव जगाने, रक्षा बन्धन आया॥