राष्ट्र घिरा हो विपदाओं से
राष्ट्र घिरा हो विपदाओं से, तब कैसा आराम।
देश भक्त जो हैं उन सबको, है आराम हराम॥
मौसम जब बद नियत हुआ हो, रचता हो षड्यन्त्र।
दुरभि सन्धि से हवा पा रहे, उग्रवाद आतंक॥
सीमाओं में जब करता हो, अरे छद्म घुस पैठ।
राष्ट्र द्रोह को जब मिलती हो, भ्रष्टाचारी भेंट॥
नयी समस्यायें उठती हों, जहाँ सुबह और शाम॥
सीमाओं पर खड़े पहरूओं, पर तो है विश्वास।
राष्ट्र प्रेम से धड़क रही है, उनकी हर एक सांस॥
किन्तु मोर्चे खुले हुए हैं, यत्र, तत्र, सर्वत्र।
जहाँ लड़ाई नहीं लड़ेगें, सेना वाले शस्त्र॥
युद्ध स्तर पर करना होगा, सबको अपना काम॥
हरिया हल जोतेगा धनिया, संग रोपेगी धान।
युद्ध स्तर पर काम करेंगे, खेत और खलिहान॥
जूझेगी श्रम की तरुणाँई, जहाँ लगे हैं यन्त्र।
कलों कारखानों में गूँजेगा, पौरुष का मंत्र॥
नगर जुटेंगे उद्योगों में, हरित क्रान्ति में ग्राम॥
तात्या,लक्ष्मी,बोस,भगतसिंह, अरविन्द,बहादुर शाह।
शिवा, प्रताप, गुरुगोविन्द सिंह, गाँधी भरते हैं आह॥
पहले राष्ट्र बाद में हम हैं, उनकी यह आवाज।
गूँज रहा है दशों दिशाओं, में अखण्डता का साज॥
गुरुद्वारे, मंदिर, मस्जि़द का, है यह ही पैगाम॥