ओ नारी तू महतारी तू
ओ नारी तू महतारी, तू है करूणा अवतार।
तेरा ही पय पीकर पलता, ये सारा संसार॥
तेरे हृदय हिमालय से माँ, ममता की गंगा बहती।
अनुदानों की पावन यमुना, दान शीलता सी झरती॥
विद्या धर्म शील सेवा की, शक्तियाँ साकार॥
पड़ा मचलता प्यारा बचपन, मेरी गोदी की पलना।
गूँगे को वाणी देती माँ, लूले को फिरना चलना॥
सृष्टी का आधार है तेरा, त्यागमयी व्यवहार॥
कदम कदम पर जीवन पथ में, बिछे हुए है काँटें शूल।
किन्तु तेरे श्रम स्वेद को पीकर, बन जाते वे ही सब फूल॥
तेरी विनम्रता गागर में, सदा छलकता प्यार॥
माथे पर टीका कलंक का, परदा चार ये दीवारी।
और अशिक्षा गले की, फाँसी बनी हुई है तेरी॥
गहनों जेवर से न सजाओ, बहनों का श्रृंगार॥
ओ रण चण्डी दुर्गा काली, दमन करो दानवता का।
सीता सावित्री का जीवन, दर्शन सार मनुजता का॥
तू ही विद्या तू ही शिक्षा, सरस्वती अवतार॥