विषयों से नहीं फुरसत जिनको
विषयों से नहीं फुरसत जिनको, सत्संग में आना क्या जानें।
मन जिनका भ्रम में डोल रहा, वो अपना ठिकाना क्या जानें॥
जिन पर प्रभु की होती है कृपा, सत्संग में वो ही आते हैं।
सत्संग का अमृत रस पीकर, पीकर के अमर हो जाते हैं॥
घर छोड़ जो सत्संग आते नहीं, वो सुनना समझना क्या जानें॥
अहंकार के मद में आकर के, गीता की महिमा नहीं गाते हैं।
लोभी रहा लोभ की मस्ती में, फँस करके विलय हो जाते हैं॥
दिन रात जो पाप समेट रहा, वो धर्म कमाना क्या जानें॥
ज्यादा मैं महिमा क्या गाऊँ, सत्संग है मर्म बतलाया।
था जिनका आतम रोग हुआ, सत्संग से छुटकारा पाया॥
जो खुद सत्संग नहीं आते, वो औरों को लाना क्या जानें॥