रहे न नाम निशान
रहे न नाम निशान धरा पर, अंधकार अज्ञान का।
अगर जलालो मन मन्दिर में, एक दीप ईमान का॥
भ्रम का कुआँ खोदते रहते, चमत्कार के अभ्यासी।
अन्तर मन का मैल छुड़ाने, जाते हैं कावा काशी॥
नयी चेतना से भर जाये, कुण्ठित मन इन्सान का॥
ज्योति पर्व हर वर्ष मनाते, बीत गयी जीवन घड़ियाँ।
तम पहाड़ की फटी न छाती, लाखों छोड़ी फूलझड़ियाँ॥
जगमग- जगमग पथ प्रशस्त हो, मानव के निर्माण का॥
सरल नहीं है तिमिर ठेलना, केवल मीठी बातों से।
सारी रात जूझना पड़ता, तम के झंझावातों से॥
जीवन यज्ञ सफल हो जाये, आत्म त्याग बलिदान का॥
जिस दिन फूटेगा भीतर से, एक गीत सच्चाई का।
बन जायेगा कीर्तिमान नव, मानव की ऊँचाई का॥
भाग्य सितारा चमक उठेगा, नवयुग के निर्माण का॥
संगीत की गरिमा असीम है। उसे नाद ब्रह्मशब्द कहकर भगवान के समतुल्य ठहराया गया है।