सृजन हम करें
सृजन हम करें नया संसार, बने फिर यही दिव्य परिवार।
भाई- भाई भरत राम सा, नित्य बढ़ायें प्रेम।
दशरथ जैसे पिता जगत में, नित्य निभाये नेम॥
कौशल्या माता की ममता, घर के आँगन बिखरे।
सीता की सुशीलता घर की, बहुओं में नित निखरे॥
बढ़े आपस में शुभ सहकार॥ बने फिर यही-
भारत भर के भव्य भवन हों, नन्दन वन से सुरभित।
घर के परिजन देव गुणों से, करें स्वयं की पूरित॥
सद्गृहस्थ के आदर्शों से, सबके मन हों मुखरित।
संस्कार जागें घर- घर में, ऋषि वाणी हो गुञ्जित॥
बनायें भावभरा व्यवहार॥ बने फिर यही-