ले चला संत बन
ले चला संत बन जानकी को असुर।
तो जटायु ने रोका अमर हो गया॥
वह तो था मात्र पक्षी ही इस देश का।
जानकी के लिए देखो, खुद मिट गया॥
तुम तो हनुमान हो शौर्य कुछ तो करो।
राक्षसी सृष्टि का, दुर्ग जल जायेगा॥
भावना से मलिन आचरण से कुटिल।
उनसे कह दो कि खुद को बदल ले अभी॥
जो न बदलेगा खुद को समय पर अरे।
वक्त उनको उलटता चला जायेगा॥