रक्षा- बन्धन विमल स्नेह
रक्षा- बन्धन विमल स्नेह की, रक्षा करना सिखलाता है।
ज्ञानपर्व श्रावणी यही है, ज्ञानार्जन विधि बतलाता है॥
इसे श्रावणी भी कहते हैं, वेदों की पूजा होती है।
ऋषियों द्वारा दिव्य ज्ञान की, प्राप्त सहज ऊर्जा होती है॥
ग्रन्थ नहीं पूजे जाते हैं, दिव्य ज्ञान पूजा जाता है॥
खड़ी हुई पीड़ित मानवता, हाथों में रक्षा बन्धन ले।
ढूँढ़ रही संवेदनशीलों की, कलाइयाँ संवेदन ले॥
जिधर देखती उधर घृणा का, वातावरण नजर आता है॥
सद्ग्रन्थों को पढ़ें- पढ़ायें, यह संदेश श्रावणी देती।
कर यज्ञोपवीत को धारण, द्विज बन जाने को वह कहती॥
ब्राह्मण के चिन्तन चरित्र से, विश्व प्रेरणायें पाता है॥
संवेदन वाली कलाइयाँ, अब तो अपना हाथ बढ़ायें।
मानवता से राखी बँधवा, रक्षा का विश्वास दिलाये॥
देखें कौन राष्ट्र संस्कृति की, रक्षा को आगे आता है॥
संगीत आत्मा के ताप को शान्त एवं शीतल कर सकता है। यह आत्मा की मलीनता को धोकर पवित्र कर सकता है। - महात्मा गाँधी