याद आ रही है हर क्षण
याद आ रही है हर क्षण ही, पिता आपके प्यार की।
भूल नहीं पाते हैं माता, स्मृति मृदुल- दुलार की॥
इस दुनियाँ में कौन किसी का, सभी सगे हैं स्वार्थ के।
पर मिलते अनुदान आपसे, पिता पुण्य- पुरुषार्थ के॥
संवेदना से शून्य मनुजता, प्यार नहीं दे पाती है।
माँ ऐसे में स्नेह आपकी, करुणा हमें पिलाती है॥
कैसे भूल सकें हम स्मृति, दोनों के उपकार की॥
भटकाने को लोभ- मोह के, पग- पग पर भटकाव हैं।
कदम- कदम पर अहंकार के, आकर्षक- अटकाव हैं॥
छद्म- वेष भरकर यह दुनियाँ, हर क्षण छलने आती है।
मन की गति भी तो विचित्र है, शीघ्र डगमगा जाती है॥
याद तभी आती दोनों के, प्यार और फटकार की॥
मानवता भी दुःखी हो उठी, पतन- पराभव पाप से।
और देव संस्कृति पीड़ित है, भोगवाद अभिशाप से॥
कहाँ गये सौजन्य, सौम्यता, कहाँ गये शील, संयम।
छाई है ऐसी अनास्था, भले सभी साधना श्रम॥
याद आ रही हैं दोनों की क्षमताएँ, प्रतिकार की॥
हमें साधना की क्षमता दो, सभी करें युग- साधना।
ले संबल ऋषि युग्म आपका, करें लोक आराधना॥
ताकि बच सके पतन- पाप से, गरिमा अब मानवता की।
नष्ट हो सके आतंकों वाली, दुनियाँ दानवता की॥
ऋषि- संवेदन भरी विरासत, मुक्ति करे संसार की॥