मुक्तक-
सत्संग किया ना एक घड़ी, हर समय स्वार्थ में जुटा रहा।
हीरा सा जीवन पाकर भी, कौड़ी के दामों लुटा रहा॥
प्यार तो हमें जिन्दगी से
प्यार तो हमें जिन्दगी से बहुत।
किन्तु जीना हमें हाय आता नहीं॥
क्योंकि जिससे जिसे प्यार होता अधिक।
वह उसे व्यर्थ यूँ ही गँवाता नहीं ॥
चाहते हम सभी कि, युगों तक जियें।
और जीवन सुधा, हम हमेशा पियें॥
शाल फटने लगे, जिन्दगी की अगर।
जिस तरह हो, उसे आखिरी तक सीयें॥
प्यार तो जिन्दगी में सभी चाहते।
किन्तु कोई उसे साध पाता नहीं॥....प्यार तो है॥
लाड़ ही लाड़ में हम जहर दे रहे।
प्यार ही प्यार में, प्राण भी ले रहे॥
हम अनाड़ी पने से, जिये जिन्दगी।
जी रहे शान से, ये कहे जा रहे॥
जिन्दगी की कला सीख पाये न हम।
कोई ऐसी कला क्यों सिखाता नहीं॥....प्यार तो है॥