रघुनन्दन राघव राम हरे
रघुनन्दन राघव राम हरे, सीताराम हरे सीताराम हरे।
बृजनन्दन माधव श्याम हरे, राधेश्याम हरे, राधेश्याम हरे॥
हे अवतारी, जगहितकारी, दुष्ट विनाशक, भवभय हारी।
दोष दलन की शक्ति हमें दो, अपनी निर्मल भक्ति हमें दो॥
वह भक्ति जो सबसे प्रेम करे, सीताराम हरे सीताराम हरे॥
तुमने पिछड़ों को अपनाया, प्रेम दिया सम्मान दिलाया।
हम को भी यह कला सिखा दो, भेदभाव का भूत भगा दो॥
हों सिद्ध आपके भक्त खरे, राधेश्याम हरे, राधेश्याम हरे॥
मायावी बढ़ रही असुरता, विकल हो रही आज मनुजता।
जन- जन में देवत्व जगा दो, जीवन में, सहयोग बढ़ा दो॥
फिर विकल मनुजता धीर- धरे, सीताराम हरे सीताराम हरे॥
मानव की बढ़ गई शक्तियाँ, दानव सी क्यों हुई वृत्तियाँ।
प्रभु! सबके मन स्वच्छ बना दो, सबमें शुभ सद्भाव जगा दो॥
कर दो सबके मन हरे- भरे, राधेश्याम हरे, राधेश्याम हरे॥
सामान्यतः संगीत के मूल उद्देश्य सौन्दर्यानुभूति हृदय में नैतिकता की अभिवृद्धि तथा आनन्द की प्राप्ति है।