इस तरह से अंधेरा घिरा है, अब तो दीपक जलाना पड़ेगा।
काम चलना न खामोश रहकर, राग दीपक सुनाना पड़ेगा॥
देखिये तो अंधेरे की हिम्मत, झोपड़ी से महल तक खड़ा है।
पैर तल में जमाते- जमाते, देखलो चोटियों तक चढ़ा है॥
हर जगह रोशनी को पहुंच कर, मोर्चे अब जमाना पड़ेगा॥
हर गलत काम का सिर उठाना, बहुत मुमकिन अंधेरे गदर में।
गलतियों के लिए रास्ता वह, खोलता जंगलों में शहर में॥
इसलिए रोशनी का सिपाही, हर जगह ही बिठाना पड़ेगा॥
देखिए आज अज्ञान का तम, क्या कहाँ पर नहीं कर रहा है।
व्यक्ति,परिवार पर,राष्ट्र पर वह, दांव पर दांव जो धर रहा है॥
धर्म संस्कृति,कला हर विधा को, आज इससे बचाना पड़ेगा॥
हैं अभावों ग्रसित इस समय हम, और अज्ञान भी छा रहा है।
टूटती जा रही आस्थाएं, और विश्वास बल खा रहा है॥
दीप यज्ञों का युग धर्म अब तो, भावनामय बनाना पड़ेगा॥
प्राण के दीपकों को जलाकर, थाल में दीपकों को सजायें।
भीतरी,बाहरी तम हटाकर, रोशनी के सिपाही बिठायें॥
दीपकों ज्ञान की भी मशालें, आज तुमको उठाना पड़ेगा॥