एक समिधा जली
एक समिधा जली, मैं हवन हो गया।
आत्म ज्योति जगी, मन सुमन हो गया॥
एक ऐसी तपन प्राण पायें, होम दी तो तरलता मिली।
राग के मंत्र ऐसे उच्चारे, अमृत होकर गरलता मिली॥
एक श्रद्धा जगी, मैं हवन हो गया॥
साँस चन्दन हुई मौन दहकी, गन्ध से भर गई हर दिशा।
ज्योति ऐसी जगी चेतना की, भोर में ढल गई हर निशा॥
एक सूरज उगा, मैं गगन हो गया॥
एक आहुति हुई उम्र सारी, कालिमा बन धुआँ उड़ गई।
मुक्ति सी तृप्ति वातावरण में, हर क्रिया त्याग से जुड़ गई॥
एक बन्धन हंसा, मैं वरण हो गया॥
पूजात् कोटि गुणं स्त्रोतं, स्त्रोतात्कोटि गुणो जपः।
जपात् कोटि गुणं गानं, गानात्परतरं न हि।।
पूजा से कोटि गुना फल स्त्रोत के पाठ से होता है, स्त्रोत पाठ से कोटि गुना फल जप से, जप से कोटि गुना फल गायन से होता है। गायन से बढ़कर ईश्वर प्राप्ति का साधन दूसरा नहीं।