ओ मानव तेरे जीवन का
ओ मानव तेरे जीवन का, आधार रहेगा कितने दिन।
इस तन में चलती साँसों का, यह तार रहेगा कितने दिन॥
धन माल कमाया भी तूने, संसार बसाया भी तूने।
तू खाली हाथ ही जायेगा, अधिकार रहेगा कितने दिन॥
क्यों ऐंठ ऐंठकर चलता तू, किस मद में फूला फिरता तू।
ये नशा चढ़ा है जो तुझ पर, ये नशा रहेगा कितने दिन॥
मात- पिता या पत्नि हो, पुत्र हो चाहे भाई हो।
अपना कहने वालों का, यह प्यार रहेगा कितने दिन॥
लख चौरासी योनि में तू, भटक- भटक कर आया है।
इस नाशवान दुनियाँ का, आधार रहेगा कितने दिन॥
काल निरंजन की माया, तीनों लोक पसारा है।
उस अकाल पुरूष की छाया से, तू दूर रहेगा कितने दिन॥
सद्गुरु की खोज तू कर प्यारे, निजधाम तुझे ले जायेंगे।
तू बूँद है अमृत सागर की, पर बूँद रहेगा कितने दिन॥
जब बूँद मिलेगी सागर से, तू खुद सागर बन जायेगा।
आसार है यह संसार को, भव पार करेगा तू एक दिन॥