ऐसा जीवन जीयें
ऐसा जीवन जीयें, हमारा जीवन ही पूजा बन जाये।
पूजन की पवित्रता जैसी, जीवन में पावनता आये॥
वाणी में इतनी मिठास हो, शब्द शब्द हो मधु- सा मीठा।
अपने शब्दों के मिठास से, रस छलके हो स्वाद अनूठा॥
जन- मन के विष की ज्वाला को,शांत करे वाणी का अमृत।
वाणी सुधा पिलायें सबको, यह मिठास ही भोग लगायें॥
नित्य भावना प्रभु से जोड़ें, वह क्रम ही सच्ची पूजा है।
सद्विचार जग में फैलायें, पुण्य नहीं इस सम दूजा है॥
जनहित ही सब करे, साधन सौंपे वह सच्चा जन है।
वही भक्ति के, ज्ञान- कर्म के, शुभ संगम में नित्य नहाये॥
आत्म जागरण की विधि द्वारा, हम अपना भगवान जगायें।
धोकर मन के दुर्भावों को, प्रभु को हम स्नान करायें॥
हम अपने दैनिक जीवन में, सदाचार की करें साधना।
सदाचार की दिनचर्या ही, ईश्वर का परिधान कहायें॥
हर व्यक्ति को संगीत का अभ्यास होना चाहिए भले ही उसका कण्ठ कितना ही कठोर या रूखा क्यों न हो।
-वाङमय- १९ पृ. ६. २७