एक बेटी विदा हो रही
एक बेटी विदा हो रही हो कहीं,
उर नयन द्वार से छल- छलाने लगे।
हो रही हो कई बेटियाँ जब विदा,
क्यों न करुणा कि क्रन्दन मचाने लगे॥
मातृ ममता मधुर रस पिलाया तुम्हें,
स्नेह समतामयी ने खिलाया तुम्हें।
लाड़ से प्यार से हो दुलारा गया,
स्नेह शिल्प से हो संवारा गया॥
भावना उर्भिमा ही विदा ले अगर,
क्यों न ममतामयी छटपटाने लगे॥
बेटियाँ दे रही भाव भीनी विदा,
पर रहेगी हृदय में बसी सर्वदा।
है विवशता की तुमको विदा कर रहे,
हैं बिछुड़ते हुए यह नयन झर रहे॥
किस तरह रोक लूँ मैं तुम्हें बेटियों,
जब कि कर्तव्य तुमको बुलाने लगे॥
लो सुकोमल हृदय दे रही हूँ तुम्हें,
वक्ष की पीर कुछ कह रही हूँ तुम्हें।
मानवी है द्रवित पीर पहचानना,
और उसके कि हर दर्द को जानना॥
स्नेह संवेदना ले पहुँचना वहाँ,
अश्रुधारा विवशता बहाने लगे॥
तुम बड़ों को सम्मान देना सदा,
बाँटना शील सौजन्य की ही सुधा।
स्नेह संवेदना धैर्य करुणा क्षमा,
हृदय में भरो शील से हरीतिमा॥
त्याग, तप और बलिदान की भावना,
प्रेम पीयूष सबको पिलाने लगे॥
बेटियाँ हैं विवश आज नारी बहुत,
हो रही नारियों की ख्वारी बहुत।
नारियों का तन कैद मन कैद है,
आज आकाश पाताल सा भेद है॥
विश्व की जननियों के लिए आज तुम,
नर्क का द्वार नर ही बनाने लगे॥
सीख दी जो तुम्हें भूल जाना नहीं,
और नारित्व गरिमा घटाना नहीं।
कष्ट में मुस्कराना पड़ेगा तुम्हें,
स्वर्ग घर को बनाना पड़ेगा तुम्हें॥
जागरण गीत गाना पड़ेगा तुम्हें,
हो न ऐसा तुम्हें ही सुलाने लगे॥