उमड़ी है विश्व भर में
उमड़ी है विश्व भर में,विष की विशाल धारा।
ऐसे में है मनुज को, गुरुदेव का सहारा॥
ऋषि युग्म का सहारा॥
लहरें प्रबल प्रलय सी, हर पल डरा रही है।
नीवें हरेक भवन की, अब चरमरा रही है॥
कुछ सर्वनाश जैसा, हर ओर है नजारा॥
तुम ईश चेतना थे, जन्में शरीर बनकर।
गुरु रामदास बनकर, जन्में कबीर बनकर॥
फिर रामकृष्ण बनकर, तुमने जगत संवारा॥
धरती गगन तुम्हारी, दुहरा रहे कहानी।
तन से न कह सके जो, कहती परोक्ष वाणी॥
हर मोड़ पर तुम्हारा, मिलता हमें इशारा॥
गुरु की अजस्र वाणी, हमने सदा सुनी है।
उनकी डगर इसी से, हमने स्वयं चुनी है॥
बढ़ते सतत् रहेंगे, संकल्प है हमारा॥
हो ताप शीत वर्षा, प्रण से न हम टलेंगे।
संजीवनी सुधा को, हम बाँटते रहेंगे॥
दुष्वृत्तियाँ न जिससे, पनपे यहाँ दुबारा॥