इस योग्य हम कहाँ हैं
इस योग्य हम कहाँ हैं, गुरुवर तुम्हें रिझायें।
फिर भी मना रहे हैं, शायद तु मान जाये॥
जब से जनम लिया है, विषयों ने हमको घेरा।
छल और कपट ने डाला, इस भोले मन पे डेरा॥
सद्बुद्धि को अहं ने, हरदम रखा दबाये॥
निश्चय ही हम पतित हैं, लोभी हैं लालची हैं
तेरा ध्यान जब लगायें, माया पुकारती है॥
सुख भोगने की इच्छा, कभी तृप्त हो न पाये॥
जग में जहाँ भी जायें, बस एक ही चलन है।
एक- दूसरे के सुख में, खुद को बड़ी जलन है॥
कर्मों का लेखा जोखा, कोई समझ न पाये॥
जब कुछ न कर सके तो, तेरी शरण में आये।
अपराध मानते हैं, झेलते सब सजायें॥
अब ज्ञान हम को दे दो, कुछ और हम ना चाहें॥