उठो तरूणाई अब जौहर
उठो तरूणाई! अब जौहर दिखाने का समय है।
राष्ट्र की अस्मिता अब तो बचाने का समय है॥
जवानी जगी ऋषियों की, उछाला आत्मबल को।
सँवारा तप, तितीक्षा, त्याग, के प्रेरक क्षणों को॥
ऋचाएँ हो गई मुखरित जवानी के स्वरों में।
जगत्गुरु बन गया भारत जगत् के चिन्तकों में॥
सुलभ युगदेव काचिन्तन बनाने का समय है॥
तरूण थे राम- लक्ष्मण, यज्ञ की रक्षा करी थी।
जवानी पाप से अन्याय से, तनकर लड़ी थी॥
जवानी की उमंगो ने, महाभारत रचा था।
रगों में ज्वार अर्जुन की, जवानी का उठा था॥
कुकर्मी कौरवों को फिर, छकाने का समय है॥
जवानी! शील, संयम, शौर्य की ही साधना है।
जवानी! दुर्गुणों से दुर्व्यसन से जूझना है॥
जवानी को कुरीति, रूढ़ियों से मुक्ति पानी।
पतन से पराभव से राष्ट्र की संस्कृति बचानी॥
जवानी! सप्त क्रान्ति में लगाने का समय है॥
जवानी तीर्थंकर बुद्ध बनकर के उभरती।
जवानी शिवा, राणा, मौर्य का निर्माण करती॥
भगतसिंह, वीर सावरकर, सुभाष, आजाद, उभरते।
कि जिनके तेवरों को देख, थे अंग्रेज डरते॥
जवानी! बस वही तेवर दिखाने का समय है॥
राष्ट्र अन्याय से आतंक से अब तो त्रसित है।
और अपसंस्कृति से राष्ट्र जनमानस ग्रसित है॥
इस समय मौन रहना, राष्ट्रीय अपराध होगा।
और इतिहास पर तरूणाई के यह दाग होगा॥
इरादे ध्वंस के अब तो मिटाने का समय है॥