राष्ट्र समर्थ और सशक्त कैसे बनें?

बढ़ता मूल्य और गिरता स्तर कैसे रुके?

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विकृतियों को रोकने का एक कारगर उपाय प्रतिद्वंद्विता उत्पन्न करना है। बाजार भाव प्रतिस्पर्धा के आधार ही स्थिर रहते हैं। एकाधिपत्य जब कहीं भी होगा, भ्रष्टता उत्पन्न करेगा। खाद्य व्यापार के संबंध में भी यही उपाय बरता जाना चाहिए। आजकल की संकटपूर्ण घड़ियों में तो यह और भी अधिक आवश्यक है।

वस्तुओं की कमी होने पर, जब उनका मिलना कठिन होता है, तो जनता में आगे चलकर उन वस्तुओं के न मिलने की आशंका उत्पन्न हो जाती है और घबराहट में लोग अनावश्यक खरीद करने लगते हैं। इस बढ़ी हुई मांग और वस्तुओं की कमी से संतुलन बिगड़ जाता है। इस अवसर का लाभ व्यापारी लोग वस्तुएं छिपाकर उठाते हैं। चीजें नहीं मिलतीं तो मुंह मांगा दाम मांगा और वसूल किया जाता है। कंट्रोल लगाने की खबर से ऐसी ही हड़बड़ी उत्पन्न होती है। वस्तुएं सस्ती होने की अपेक्षा वे बाजार से ही गायब हो जाती हैं और तब मुंह मांगे मोल पर गुप्त रूप से खरीदना पड़ता है।

इसी प्रकार एक दूसरी गड़बड़ी यह होती है कि वस्तुएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं, जिनकी न तो लागत बढ़ी है और न किसी प्रकार की कमी है, उन्हें भी महंगाई की हवा में व्यापारी लोग महंगा कर लेते हैं। इससे उपभोक्ता का भार और भी बढ़ जाता है।

यों ऐसे प्रयत्न कोई सेवाभावी उदार व्यक्ति एकाकी भी चला सकते हैं। इसमें उनका नुकसान नहीं पड़ेगा, केवल समय ही सस्ते मोल में लगाना पड़ेगा। मोटा नफा न लेकर मंजूरी मात्र लेना जिन्हें मंजूर हो, वे अकेले भी ऐसी लोकोपयोगी कार्य आरंभ कर सकते हैं। पर अच्छा तरीका मिल-जुलकर सहकारिता के आधार पर काम चलाने का ही है। इससे लोगों को सहकारिता का महत्त्व मालूम पड़ता है, पूंजी जुटाने में कठिनाई नहीं पड़ती और अनेक व्यक्तियों की देखभाल रहने से एक व्यक्ति को लाभ मिलने का प्रलोभन न रहने से—गड़बड़ी की भी संभावना कम ही रहती है।

सस्ते के साथ में एक प्रश्न अच्छे का भी है। सस्ती खाद्य वस्तुएं तो बाजार में अक्सर मिल जाती हैं, पर स्तर की दृष्टि से वे इतनी घटिया होती हैं कि उन्हें खाना भूखे रहने से भी अधिक हानिकारक सिद्ध होता है। सड़ी-गली, बुरी-भली चीजों से जो भोजन बनाया गया होगा, वह देखने भर का मिष्ठान्न पकवान हो सकता है, वस्तुतः उसे खाना शरीर में अनेक रोगों को खुला निमंत्रण देने की बराबर हानिकारक होता है। इसलिए जितना खाद्य पदार्थों का सस्तापन आवश्यक है, उतना ही यह भी आवश्यक है कि स्तर की दृष्टि से वे वस्तुएं सड़ी-गली अस्वास्थ्यकर चीजों से गंदे-घिनौने तरीकों से—मैले बर्तनों में, बीमार आदमियों द्वारा न बनाई गई हों। तैयार भोजनों के संबंध में ऐसी सावधानी का रखा जाना भी जरूरी है। इस आवश्यकता को सहकारी प्रयत्नों से ही पूरा किया जा सकता है। व्यापारी प्रतिद्वंद्विता के भय से चीजों के दाम तो सस्ते रख सकते हैं, पर स्तर की बात जो आसानी से छिपाई जा सकती है—पहचानने में नहीं आती—उसे सुधार कर अपना मुनाफा कम करेंगे, ऐसी आशा नहीं की जा सकती। यह कार्य जनता को अपने हाथों में ही लेना पड़ेगा। सहकारिता के आधार पर कच्चे तथा पके हुए खाद्य पदार्थों को स्तर की दृष्टि से अच्छा और मूल्य की दृष्टि से सस्ता रखते हुए जनता को उपलब्ध कराने का कार्य आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। अस्तु लोकसेवी व्यक्तियों को इसके लिए जगह-जगह प्रयत्न करना चाहिए और संकटग्रस्त जनता की सहायता के लिए उदार सुविधा उत्पन्न करने का श्रेय-साधन जुटाने में उत्साह दिखाना चाहिए।

हर व्यापार व्यक्तिगत हाथों में रहे, इसमें कुछ हर्ज नहीं। पर जब उसमें अवांछनीय गड़बड़ी उत्पन्न हो जाय तो उसकी रोक-थाम भी होनी चाहिए। खाद्य व्यापार में संलग्न व्यक्तियों को ईमानदार और देश-भक्त बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि उनका एकाधिकार समाप्त हो और प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़े। उपभोक्ता को न सहकारी दुकान से दोस्ती होती है, न व्यापारी से दुश्मनी। जहां भी अच्छी और सस्ती चीज मिलेगी, वहीं वह लेगा। ऐसी प्रतियोगिता सहकारिता के आधार पर खड़ी की जानी चाहिए, ताकि किसी को भी अनुचित लाभ उठाने का अवसर न रहे।

इस व्यवस्था के अंतर्गत यह सोचना ठीक नहीं कि किसी की रोजी छिनेगी। वरन् सही बात तो यह है कि और भी अधिक लोगों को काम मिलेगा। थोक व्यापारी बड़े साधनों से बड़ी व्यवस्था एक ही जगह जमा लेता है, पर छोटे प्रयत्नों से अधिक व्यक्तियों का, अधिक साधनों का प्रयोग करना पड़ता है, इसलिए मिल के कपड़ों की अपेक्षा खादी पहनने से जिस प्रकार अधिक संख्या में अधिक गरीबों को रोटी मिलती है, ठीक उसी प्रकार इन सस्ती सहकारिता की दुकानों से अधिक लोगों को अधिक काम मिलेगा।

खाद्य पदार्थ सुलभ करने के लिए—उनकी अच्छाई और सस्तापन बनाये रखने के लिए इस प्रकार के सहकारी प्रयत्नों का देशव्यापी अभियान आरंभ किया जाना चाहिए। यद्यपि यह आर्थिक कार्यक्रम है, पर इसके पीछे एक ऐसी महत्त्वपूर्ण परंपरा विद्यमान है, जिसे विकसित किया जाना राष्ट्र के उज्ज्वल भविष्य के लिए सब प्रकार आवश्यक है।

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