गायत्री विषयक शंका समाधान

गायत्री उपासना का समय

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प्रातःकाल का समय गायत्री उपासना के लिए सर्वोत्तम है। सूर्य उदय से पूर्व दो घंटे से लेकर दिन निकलने तक का समय ब्राह्म मुहूर्त माना जाता है। इस अवधि में की गई उपासना अधिक फलवती होती है। सायंकाल सूर्य अस्त होने से लेकर एक घन्टे बाद तक का समय भी संध्याकाल है। प्रातःकाल के उपरान्त दूसरा स्थान उसी समय का है। इतने पर भी किसी अन्य समय में न करने जैसी रोक नहीं है। दिन में सुविधानुसार कभी भी जप किया जा सकता है। जिन लोगों को रात की पाली में काम करना पड़ता है, जैसे रेलवे आदि की नौकरी में छुट्टी के समय बदलते रहते हैं, वे अपनी सुविधानुसार जब भी स्नान आदि करते हैं तो उपासना को भी नित्यकर्म में सम्मिलित रख सकते हैं। इस प्रकार बार-बार समय-बदलना पड़े तो भी हर्ज नहीं है। न करने से करना अच्छा। प्रातः सायं का समय न मिलने के कारण उपासना ही बन्द करदी जाय यह उचित नहीं। सर्वोत्तम न सही तो कुछ कम महत्त्व का समय भी बुरा नहीं है।

रात्रि को जप करना निषिद्ध नहीं है। शास्त्रकारों ने सामान्य सुविधा का ध्यान रखते हुए ही रात्रि का महत्त्व घटाया है। दिन काम करने के लिए और रात्रि विश्राम के लिए है। विश्राम के समय काम करेंगे तो इससे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसलिए विश्राम के घण्टों में विक्षेप न करके काम के ही घण्टों में ही अन्य कामों की तरह ही उपासना करने का औचित्य है। एक कारण यह भी है कि सविता को गायत्री का देवता माना गया है। सूर्य की उपस्थिति में उस उपासना द्वारा सूर्य-तेज का अधिक आकर्षण किया जाता है। उसकी अनुपस्थिति में लाभ की मात्रा में कुछ कमी रह जाती है। इन्हीं दो बातों को कारण रात्रि में उपासना का महत्त्व कम किया गया है। किन्तु निषेध फिर भी नहीं है। दिन की तरह रात्रि भी भगवान द्वारा ही निर्मित है। शुभ कार्य के लिए हर घड़ी शुभ है। जिनके पास और कोई समय नहीं बचता वे रात्रि में भी अपनी सुविधानुसार किसी भी समय अपनी उपासना कर सकते हैं।

विधि निषेध का असमंजस अधिक हो तो रात्रि की उपासना मौन मानसिक की जा सकती है। माला का प्रयोजन घड़ी से पूरा किया जा सकता है। माला प्राचीन काल में हाथ से प्रयुक्त होने वाली घड़ी है। परम्परा का निर्वाह करना और माला के सहारे जप करने की नियमितता बनाये रहना उत्तम है। फिर भी रात्रि में माला न जपने से किसी विधि निषेध की मन में उथल-पुथल हो तो माला का काम घड़ी से लेकर नियत संख्या की—उपासना अवधि की नियमितता बरती जा सकती है।

माला में चन्दन की उत्तम है। शुद्ध चन्दन की माला आसानी से मिल भी जाती है। तुलसी के नाम पर बाजार में अरहर की या किन्हीं जंगली झाड़ियों की लकड़ियां ही काम में लाई जाती हैं। इसी प्रकार रुद्राक्ष के नाम पर नकली गुठलियां ही बाजार में भरी पड़ी हैं। उनके मनमाने पैसे वसूल करते हैं। आज की स्थिति में श्वेत चन्दन की माला ही उत्तम है। यों वे नकली भी खूब बिकती हैं। असली होना आवश्यक है। चन्दन, तुलसी, रुद्राक्ष में से जिसका भी प्रयोग करना हो वह असली ली जाय इसका यथासंभव प्रयत्न करना चाहिए।

मानसिक जप रात्रि में करने में कोई अड़चन नहीं है। रास्ते चलते, सवारी में बैठे, चारपाई पर पड़े हुए भी मानसिक जप करते रहा जा सकता है। होठ, कण्ठ, जीभ बिना हिलाये मन ही मन जप, ध्यान करने में किसी भी स्थिति—किसी भी समय का कोई प्रतिबन्ध नहीं है। विधिवत् की गई साधना की तुलना में विधि रहित मानसिक जप-ध्यान का फल कुछ कम होता है। इतनी ही कमी है। जितना गुड़ डाला जाय उतना मीठा होने की बात विधिवत् और मानसिक जप पर भी लागू होती है।
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