उस दिन मेलबोर्न-आस्ट्रेलिया में तापमान बढ़कर 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच गया था। उस साल की गर्मियों का सबसे गरम दिन। विद्यालय की छुट्टी लगभग खत्म हो चुकी थीं। ज्वायसलीन हापकिंस अपने दोनों बेटों व बेटी के मित्र से बड़ी देर से गरमी की शिकायत सुन रही थी। 13 वर्षीय लीह और 12 वर्षीय डेनियल उसके अपने बेटे थे। 12 वर्षीय कार्ल पावेल इनका दोस्त था। तीसरा पहर बीत गया था, पर गर्मी कम होने का नाम नहीं ले रही थी। टी.वी. पर छह बजे के समाचारों में दर्जनों बच्चों को नगर के चौक वाले फव्वारे के जलकुण्ड में पानी के छींटे उड़ाते दिखाया गया, तो मिसेज़ हापकिंस ने भी गरमी से बेहाल बच्चों को वहीं ले जाने की सोची। और सात बजते-बजते वे तीनों लड़कों को साथ लेकर वहाँ पहुँच गयी।
उस स्थान पर तीन जलाशय आकर्षण के केन्द्र थे। एक तो समकोणीय चौकोर तालाब था, दूसरा था एक विशाल फव्वारा, जिसके एक ओर आस्ट्रेलियाई पर्वतारोहियों की काँसे की प्रतिमा थी और तीसरा आकर्षण का केन्द्र साढ़े चार मीटर ऊँची पानी की वह धारा थी, जो नीचे सीढ़ियों और बड़े-बड़े शिलाखण्डों पर गिरती थी। उत्साह और उमंग से भरे बच्चे यहीं पानी में छपकोरियाँ खेल रहे थे और खुशी से चिल्ला रहे थे। लीह और डेनियल उन चट्टानों का चक्कर काट कर एक नीची दीवार की ओर बढ़ गये, जहाँ से आसानी के साथ उतरा जा सकता था। लेकिन टीशर्ट और हाफ पैंट पहले दुबले-पतले कार्ल ने छोटी राह अपनाई और चट्टानों पर से उछलता-फलाँगता प्रतिमा के पास कमर भर गहरे पानी में जा पहुँचा।
अरे लीह! कार्ल ने अपने दोस्त को आवाज लगायी। लीह ने पलट कर कार्ल को हाथ हिलाते देखा और फिर मंत्रकीलित सा देखता रह गया। कार्ल पलक झपकते गायब हो गया। उसने तत्काल अपने दोस्त के पीछे डुबकी लगा दी। पानी की धार गिरने के कारण वहाँ दिखायी तो कुछ नहीं दे रहा था, पर लीह फव्वारे की तली के साथ टटोलता चला गया। आखिर तली में उसे कोई एक मीटर चौड़ा गड्ढा मिला। उसने जान की परवाह किये बिना वह उसमें सिर के बल धंस कर पानी से भरी सुरंग में जा निकला। उस नाले में पलटियाँ खाते-खाते उसका हाथ सहसा किसी का चेहरा लगा। वह कार्ल ही था। लीह ने एकबारगी उसके बालों को दबोच लिया। लेकिन फव्वारे की तलहटी में बनी उस प्रणाली में चक्कर खाते पानी का बहाव इतना तेज था कि कार्ल फिर से उसके हाथ से छूट कर बह गया।
लीह ने फव्वारे की कंक्रीट वाली तली पर जोर से लात मारी। वहाँ पड़े काँच और कचरे से उसके पाँव जख्मी तो हुए , लेकिन वह झटके से बाहर निकल आने में सफल हो गया। रास्ते में उसका चेहरा नाले में लगे पाइपों से टकरा गया। एक पल को उसे लगा कि वह फँस गया, पर उसने कलाबाजी खाकर पाइपों के बीच से अपने को निकाल लिया और तेजी से उछलकर पानी के बाहर आ गया। कार्ल के बालों का एक गुच्छा अभी तक उसकी मुट्ठी में था।
उधर नीचे पानी की तेज धारा कार्ल को पलटियाँ दे-देकर इस तरह झंझोड़ रही थी जैसे कपड़े धोने वाली मशीन कपड़ों को उलटती-पलटती हुई खँगालती है। दिशाओं की सुध-बुध खो बैठने के कारण कार्ल को इतना भी अहसास नहीं रहा था कि वह एक दूसरी सुरंग की ओर बहा चला जा रहा है, जो उस तली वाली उस सुरंग के साथ-साथ सीधी खड़ी बनी थी। उसी में वह धंस गया था। शायद मैं सीवर में पहुँच गया हूँ और अब बहता हुआ नदी में पहुँच जाऊँगा। तो मैं अब मरने ही वाला हूँ। मौत के इस अहसास के साथ कार्ल को सारे साँसारिक संबंध छूटते-टूटते से लगे।
ऊपर शाम की मलगजी रोशनी में लीह खड़ा काँप रहा था। फिर वह फव्वारे का चक्कर काट कर भागा-भाग माँ के पास पहुँचा और रोते-रोते उसने कहा-कार्ल डूब गया है। उसका चेहरा देखते ही ज्वायसलीन भाँप गयी कि कोई अनहोनी हो गयी। वह चिल्ला पड़ी पुलिस! फायरब्रिगेड जल्दी करो। लीह चौक की भीड़ चीरता, दौड़ा-दौड़ा टाउन हाल के पास ड्यूटी पर तैनात कांस्टेबल के पास पहुँचा और घबराये स्वर में बोला-मेरा साथी फव्वारे में फँस गया है। उसकी जान बनाइये । प्लीज जल्दी कुछ कीजिए।
सिपाही ने तत्काल अपनी वाकी-टाकी उपकरण का स्विच दबाया। चौक से कोई डेढ़ कि.मी. दूर पूर्वी मेलबोर्न में स्थित महानगरीय फायरब्रिगेड के मुख्यालय में आग बुझाने वाले गेरी क्रोनिन और जान रोड्डा ने 7 बजकर 33 मिनट पर खतरे की घंटी सुनी और केवल चार मिनट में ही वे दोनों व अग्निशामक दल के छह अन्य जवान नगर चौक पर जा पहुँचे। वहाँ अब तक भारी भीड़ इकट्ठी हो गयी थी।
क्रोनिन और रोड्डा कमर तक नंगे बदन हो गये। लीह के बताये स्थान पर उन्होंने पाँवों से वह गड्ढा ढूँढ़ निकाला जिसमें कार्ल धंस गया था, फिर उन्होंने एक दूसरे की ओर ताका। लड़का गड्ढे के अंदर धंस गया है, तो उसके बचने की आशा कम ही थी। क्या उन्हें पानी से भरी इस सुरंग में बैठकर अपनी जान खतरे में डालनी चाहिए। उस लड़के को खोजने के लिए , जो शायद अब तक मर भी चुका हो ? हाँ ‘, उन्होंने किसी अज्ञात प्रेरणा से यह खतरनाक फैसला किया। यह खतरा उन्हें उठाना ही चाहिए। उनका फैसला था। गोताखोरी का विशेष श्वास यंत्र प्राप्त करने का तो समय था नहीं। इसलिए क्रोनिन और रोड्डा ने अपनी - अपनी पीठ पर हवा के सिलेंडर कसे और चेहरों पर वे मुखौटे चढ़ा लिए जो आग बुझाते समय धुएँ से भरी बिल्डिंगों में घुसने के लिए पहने जाते हैं। ये उपकरण पानी के अन्दर गोता लगाने के लिए नहीं थे, लेकिन उन्होंने जल्दी से जलकुण्ड में इधर - उधर डुबकी लगाकर देखा लिया कि उनके सहारे वे साँस ले सकते हैं।
इस बीच पुलिस ने चौक की देख - रेख वाले कक्ष में एक ऐसे कर्मचारी को खोज निकाला था, जो फव्वारे की चक्कर काटती पानी की तेज धारा वाली प्रणाली को बन्द करने में सफल हो गया। पानी शाँत हो गया। 30 मीटर लम्बे रस्से से अपने को बाँधकर, जिसे उसके साथियों ने थाम रखा था, पहले क्रोनिन ने उस अँधेरे गर्त में पाँव डाले। उसने गड्ढे की तली छूने की कोशिश की लेकिन पीठ पर बंधे हवा के सिलेंडरों ने उसको उछाल दिया। उसका सिर जोर से उन दोनों पाइपों से जा टकराया, जो नाले के अन्दर से गुजरते थे, इससे उसका एक दाँत टूट गया और ठुड्डी कट गयी।
क्रोनिन नीचे ठहर सके, इसके लिए रोड्डा नाले के अन्दर क्रोनिन के कंधों के ऊपर ,खड़ा हो गया। क्रोनिन दीवारों के साथ - साथ टटोल - टटोल कर उस सुरंग की प्रणाली को समझने का प्रयास करने लगा। उसने उस सीधी सुरंग का मुहाना ढूँढ़ निकाला। लेकिन घुप्प अंधियारे में अकेले घुसना उसे खतरनाक लगा। वह तैरकर ऊपर निकल आया।
और कुछ ही क्षणों बाद उन दोनों ने दोबारा गोता लगाया। इस बार वे अपने साथ कोई दो मीटर लंबा एक बाँस भी ले गये थे, जिसके एक सिरे पर हुक लगा था। उन्होंने यह बाँस उस खड़ी सुरंग के अन्दर डाल दिया और उस समय तक टटोलते रहे, जब तक उसमें कुछ फँस नहीं गया उसे खींचने के लिए उन दोनों को बहुत जोर लगाना पड़ा। दोनों के दिल धड़क रहे थे - होनी हो चुकी है। पर उनके हाथ लगा था कचरे से भरा एक बड़ा - सा प्लास्टिक का थैला। आग बुझाने वाले दोनों जवान पानी के ऊपर आए तो पुलिस ने उन्हें अब खोज कर देने की सलाह दी। कार्ल को गायब हुए एक घण्टा हो चुका था और यह निश्चित - सा लगता था कि लड़का मर चुका है। चौक से भीड़ भी धीरे - धीरे खिसक चली थी।
लेकिन कार्ल अभी मरा नहीं था। सारे भरोसे टूट जाने और सारे सहारे छिन जाने बाद भगवान के प्रति विश्वास बाकी था। उसे यह उम्मीद बरकरार थी कि सर्वसमर्थ एवं परम दयालु परमेश्वर मुझ असहाय बालक की जरूर सुनेंगे। वह बड़ी आन्तरिकता और व्याकुलता के साथ पुकार रहा था - प्रभु ! मैं तुम्हारी शरण में हूँ। मुझे बचा लो, शरणागत वत्सल। शायद अपने भगवत् - विश्वास के कारण ही उसमें अभी मनोबल बाकी था। वह जब बहकर सुरंग में पहुँच गया था और तेजी से चक्कर काटती धारा के साथ बुरी तरह पटका और झंझोड़ा जा रहा था और उसके फेफड़े फटने - फटने को हो रहे थे, तभी भगवान को पुकारने के साथ ही उसकी उँगलियाँ किसी दीवार से खरोंच - सी खा गयीं पर दीवार बेहद चिकनी थी, फिर वह जा टकराया किसी गोल - सी चीज से, जो पाइप - सा लगता था। इस टक्कर से कार्ल की गति धीमी पड़ गयी और उसने चलकर जैसे - तैसे पाइप को पकड़ लिया और उछलकर पानी के ऊपर निकलने का प्रयास किया। वह सोच रहा था कि वह इसके सहारे पानी के ऊपर हवा में पहुँच जाए, पर तभी उसका सिर किसी सख्त चीज से टकरा गया। वह छत थी, तो कोई निकलने का रास्ता नहीं।
अग कार्ल किसी भी तरह साँस नहीं रोके रह सकता था। उसे जैसे - जैसे साँस लेनी ही थी। विकल मन से भगवान की याद करते हुए उसने अपना मुँह खोला। कितना अविश्वसनीय लगता है कि उस गुफा की एक दरार में उसे हवा की एक खोह मिल गयी थी। लंबी साँस उसने अपने फेफड़े भर लिए। जब उसने अपना चेहरा झुकाया तो वह पानी से जा लगा। यह पता करने के लिए कि साँस लेने की जगह उसके पास कितनी है कार्ल पाइप के आस - पास घुमा। बस कोई 30 सेंटीमीटर जगह थी। उसके सिर से बस थोड़ी -सी ज्यादा। उसे इस छोटे से खण्ड में ही रहना होगा। जब तक कोई सहायता न आ जाए। पर सहायता तो तभी आएगी, जब परम दयालु भगवान कृपा करें।
फिर अचानक ही उसे आस - पास उफनता पानी शाँत होता जान पड़ा। कार्ल को अचरज - सा हुआ - तो क्या परमात्मा सचमुच मुझे बचाने के लिए किसी को भेज रहे हैं ? इस समय उसका मन बड़ी विकलता से प्रभु की याद करने में तल्लीन था। हालाँकि अब उस छोटी - सी खोह में भरी हवा उसे साँस लेने से क्षीण हो रही थी।
उसे न कुछ सुझाई दे रहा था, न कुछ सुनाई पड़ रहा था, कोई आता क्यों नहीं ? वह जोर से चिल्लाया। अपनी ही आवाज सुनकर उसे थोड़ी ढाँढस बंधी और फिर वह प्रतिदिन विद्यालय में दुहराई जाने वाली प्रार्थना गुनगुनाने लगा। पर अब तक वह थक चुका था। दिमाग के तन्तु ढीले पड़ने से वह जल्दी ही ऊँघने लगा। उसका मन हो रहा था कि आँखें मूँदकर वह थोड़ी देर सो ले। नीचे फँसे उसे एक घण्टा दस मिनट हो चुके थे। लेकिन उसे अपनी ही सोच पर हंसी आ गयी। सोएगा और यहाँ ? वह वह कर भी क्या सकता था। उसने स्वयं को पूरी तरह भगवान के हवाले करके आँखें मूँद लीं।
ऊपर चौक में एक एंबुलेंस कर्मचारी कार्ल की माँ कैथलीन पावेल के साथ खड़ा उन्हें बुरी से बुरी स्थिति के लिए तैयार करने की चेष्टा कर रहा था। वह साढ़े 6 किलोमीटर दूर स्थित अपने घर से भागी - भागी घबराई हुई यहाँ पहुँची थी। पुलिस उन्हें पास के स्टोर में ले गयी। कोई भी यह नहीं चाहता था कि वे उसे स्ट्रेचर और कम्बल को देखें, जो उनके बेटे की लाश के लिए यहाँ लाया गया था। कैथलीन पावेल को लोग घटनास्थल से जितना दूर रखने की कोशिश कर रहे थे, उतनी उनकी बेचैनी और घबराहट बढ़ती जा रही थी। तभी किसी ने उनके कहा कि आप अपने बेटे के लिए भगवान से प्रार्थना करो, हालाँकि कहने वाले की मुखमुद्रा बता रही थी कि स्वयं उसे भी अपने कथन पर विश्वास नहीं है।
लेकिन ‘प्रार्थना’ इस शब्द ने उनमें नवीन चेतना का संचार किया। उनमें विश्वास की तीव्र लहर उमगी, प्रभु चाहे तो क्या नहीं हो सकता ? एक और व्यक्ति इसी विश्वास के सहारे प्रयत्नशील था। उसका विश्वास था कि कार्ल के जिन्दा होने की सम्भावना है। कई लोगों के प्रतिवाद करने के बावजूद उसने अपना कथन दुहराया, जब तक लाश नहीं मिल जाती तब तक आशा बाकी है। रोड्डा ने अपने सहयोगियों से कहा। वह अब क्रोनिन के पास खड़ा फव्वारे के कुण्ड में पानी कम होता देख रहा था, जो फायरब्रिगेड के मुख्यालय से मंगाए गये 20 टन के विशाल एक सप्ताह पूर्व बिगड़ गया था ओर संयोग से आज ही साढ़े चार बजे ठीक होकर आया था।
पानी का स्तर शीघ्रता से गिरता जा रहा था। लेकिन रोड्डा का विचार था कि उन्हें खड़ी सुरंग के एकदम खाली होने तक रुके नहीं रहना चाहिए। वह क्रोनिन के साथ नाले में लगायी गयी एक सीढ़ी से नीचे उतर गया और तली में पहुँचकर प्रतीक्षा करने लगा। पानी अभी खड़े नाले के आधे तक था। वह सोच रहा था कि जैसे ही धरती की सतह के समानांतर बनी सुरंग की छत चार - पाँच सेंटीमीटर तक पानी उतर जाएगा और उसमें हवा का प्रवेश हो जाएगा, तभी वह पीठ के बल तैरता हुआ उसमें उतर जाएगा।
फिर जैसे ही हवा की एक सँकरी - सो जगह चौड़ी होने लगी, रोड्डा को लगा उसे कुछ सुनाई पड़ा है, क्या वह किसी की चीख थी ? उसने क्रोनिन को जल्दी से सीढ़ी चढ़कर ऊपर सब लोगों को चुप कराने के लिए कहा, तभी उसके कानों में दुबारा एक आवाज सुनायी पड़ी - मुझे बचा लो भगवान ! धन्य हो।
प्रभु ! रोड्डा चीखा, लड़का जिन्दा है।
रोड्डा की पुकार सुनते ही क्रोनिन झपट कर सीढ़ी से नीचे उतर आया। तेज रोशनी वाले दो लैम्प पकड़कर वे दोनों उलटे तैरते ऊपर की खाली जगह में भरी हवा के सहारे सुरंग में घुस गए। नीचे जगह इतनी सँकरी थी कि चित्त तैरते रोड्डा की नाक सुरंग की छत से रगड़ खाकर छिल गयी। क्रोनिन के आगे - आगे तैरता रोड्डा कोई तीन मिनट आगे जाने के बाद एक छोटे - से कक्ष में जा निकला। जरा - सा मुड़ते ही उसकी आँखें कार्ल के सफेद फक पड़े चेहरे पर अटक गयीं।
गंदी हवा में साँस लेते रहने के कारण के चेहरे पर जब रोशनी पड़ी तो वहाँ आतंक -सा छा गया। वह बुरी तरह ठंड से काँप रहा था, मुझे निकालो यहाँ से ! वह चिल्लाया, माँ के पास ले चलो मुझे। लेकिन इतने पर भी उसने पाइप नहीं छोड़ा। जिस किसी तरह वह पाइप से चिपटा था। रोड्डा और क्रोनिन ने उसे बड़े प्यार से दिलासा दी और बड़ी मुश्किल से किसी तरह खींचा - तानी करके वे उसकी उँगलियों को पाइप से अलग कर पाए और उसे तैराकर सीढ़ी तक ले आए।
और जब आग बुझाने वाले दस्ते के जवानों ने कार्ल को सीढ़ी पर चढ़ाया, तो वहाँ उपस्थित सभी लोग चीख पड़े , अरे यह तो जिन्दा है। किसी को भी अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था। हर कोई हतप्रभ था। इन सबकी चीख- पुकार कार्ल की माँ के कानों में पड़ी, वह भावों के अतिरेक में बेहोश होने को आयी। उपस्थित लोगों ने उसे जैसे - तैसे सहारा दिया। वह एकबारगी चिल्ला पड़ी-प्रभु ने मेरे बेटे को बचा लिया।
कार्ल के काले बालों के कारण उसका चेहरा और सफेद फक दिख रहा था। जल्दी से कम्बलों में लपेट कर स्ट्रेचर पर लिटा दिया गया। आँखों में आँसू जब उसकी माँ उस पर झुकी तो वह बहुत ही धीमे स्वर में बोला, मैं ठीक हूँ माँ , भगवान ने मुझे बचा लिया। उन्होंने मेरी प्रार्थना सुन ली ! हाँ - बेटे ! कैथलीन पावेल का स्वर भी भाव विगलित था - प्रभु कृपा से असम्भव भी सम्भव हो जाता है। इस समय रात के 1.30 बज रहे थे। यानि कि कार्ल उस नाले में साढ़े पाँच घण्टे से भी ज्यादा देर रहा था।
एक एंबुलेंस कार्ल और उसकी माँ को क्वीन विक्टोरिया मेडिकल सेण्टर ले गयी, जहाँ उसके हाथ - पाँव लगी खरोंचों का इलाज किया गया। साथ वाले कमरे में कार्ल के बहादुर दोस्त लीह के कटे हुए तलबों की चिकित्सा हो रही थी। लीह ने जब कार्ल को बातें करते सुना तो वह भागा - भागा उसे मिलने आ पहुँचा। उससे मिलकर कार्ल बोला, भगवान सचमुच हैं , उसकी बात को बीच में रोककर लीह कहने लगा, तभी तो हमारी प्रार्थना सुनते हैं। थोड़ी देर रुककर दोनों लगभग एक साथ ही बोले - सच्चे हृदय से कोई भगवान से प्रार्थना करे और वह न सुनें, ऐसा हो ही नहीं सकता। पास में खड़ी लीह की माँ ज्वायसलीन और कैथलीन इन दोनों बच्चों की बातें सुन रही थीं। वे एक - दूसरे ओर देखते हुए बोलीं - प्रभु तो हमसे बस विश्वास की माँग करते हैं , उन पर विश्वास हो तो असम्भव भी सम्भव हो जाता है। इन चारों ने एक - दूसरे की ओर देखा और उनके चेहरों पर प्रसन्नता थिरक उठी।
अगले ही दिन जान रोड्डा दोबारा चौक पर पहुँचा। खाली नाले में उतरकर उस सुरंग में गया। जहाँ - जहाँ कार्ल ने हाथ - पाँव मार कर बदहवासी में किसी भी चीज को पकड़ने की कोशिश की थी,, वहाँ - वहाँ दीवारों पर जमी काई पर रोड्डा को खरोंचों पड़ी नजर आयीं। उस कोई लगे पाइप पर भी कार्ल की उँगलियों के निशान नजर आए थे, जिनके सहारे बड़ी देर तक चिपटा रहा था। इस बुरी तरह जमी काई की फिसलन को देखकर उसे हैरानी हुई कि आखिर कार्ल यहाँ ठहरा भी कैसे ?
उस दुर्घटना वाली रात को चौक में इकट्ठी भीड़ की ही तरह रोड्डा को भी आश्चर्य हो रहा था कि इस नाले में पाँच घण्टे फँसकर भी वह लड़का किस तरह जिन्दा बच गया। इस घटना को वहाँ के समाचार - पत्रों ने सुर्खियों में छापा - जिसने भी इस विवरण को पढ़ा - सुना, उसके मुँह से यही निकला - कार्ल पावेल का जिन्दा बच निकलना किसी चमत्कार से कम नहीं। पर प्रार्थना से तो हर चमत्कार सम्भव है।